इसे ईख या साठा भी कहते हैं !
सुश्रुत संहिता के अनुसार गन्ने को दाँतों से चबाकर उसका रस चूसने पर वह दाहकारी नहीं होता और इससे दाँत मजबूत होते हैं। अतः गन्ना चूस कर खाना चाहिए।
भावप्रकाश निघण्टु 

के अनुसार गन्ना रक्तपित्त नामक व्याधि को नष्ट करने वाला, बलवर्धक, वीर्यवर्धक, कफकारक, पाक तथा रस में मधुर, स्निग्ध, भारी, मूत्रवर्धक व शीतल होता है। ये सब पके हुए गन्ने के गुण हैं।पथरी——-ईख चूसते रहने से पथरी टुकड़े -टुकड़े हो कर निकल जाती है ! गन्ने का रस भी लाभदायक है !रक्त विकार———–खाने के बाद एक गिलास गन्ने का रस पीने से रक्त साफ होता है ! गन्ना नेत्रों के लिए भी हितकर है !पीलिया——–जौ का सत्तू खाकर ऊपर से गन्ने का रस पियें ! एक सप्ताह में पीलिया ठीक हो जायेगा !हिचकी——-गन्ने का रस पीने से हिचकी बंद हो जाती है !शक्तिवर्धक———–ईख भोजन पचाता है ! शक्तिदाता है ! पेट की गर्मी , हृदय की जलन को दूर करता है !!!!!विशेषः यकृत की कमजोरी वाले, हिचकी, रक्तविकार, नेत्ररोग, पीलिया, पित्तप्रकोप व जलीय अंश की कमी के रोगी को गन्ना चूसकर ही सेवन करनाचाहिए। इसके नियमित सेवन से शरीर का दुबलापन दूर होता है और पेट की गर्मी व हृदय की जलन दूर होती है। शरीर में थकावट दूर होकर तरावट आती है। पेशाब की रुकावट व जलन भी दूर होती है।सावधानीः मधुमेह, पाचनशक्ति की मंदता, कफ व कृमि के रोगवालों को गन्ने के रस का सेवन नहीं करना चाहिए। कमजोर मसूढ़ेवाले, पायरिया व दाँतों के रोगियों को गन्ना चूसकर सेवन नहीं करना चाहिए। एक मुख्य बात यह है कि बाजारू मशीनों द्वारा निकाले गये रस से संक्रामक रोग होने की संभावना रहती है। अतः गन्ने का रस निकलवाते समय शुद्धता का विशेष ध्यान रखें।