इस कोरोना महामारी के दौर में हर कोई अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता और ताकत को बढ़ाने के लिए तरह-तरह की कैप्सूल और खाद्य पदार्थों का प्रयोग कर रहा है।

इसके लिए घरों में लोग इम्यूनिटी बढ़ाने वाले फल एवं भोज्य पदार्थों को लाकर रखे रह रहे हैं लेकिन डाक्टरों की मानें तो खाने से ज्यादा हमें उस भोज्य पदार्थ को पचाने पर बल देना चाहिए। यदि वह पौष्टिक भोज्य पदार्थ पचा ही नहीं तो फिर वह फायदा की जगह नुकसान करेगा।

इस संबंध में All Ayurvedic के वरिष्ठ आयुर्वेदाचार्य डॉ. शशिकांत राय (गोल्डमेडालिस्ट) का कहना है कि हर समय सुपाच्य भोजन पर बल देना जरूरी है। यदि वह भोजन पचा नहीं तो फिर उसके किसी तत्व को कोई अर्थ नहीं रह जाता है। वह फायदा की जगह नुकसान ही करेगा।

उदाहरण के तौर पर हमारे सामने मांसाहारी भोजन है। उसमें प्रोटीन ज्यादा होने के बावजूद उससे बेहतर शाकाहारी सब्जियों के प्रोटीन फायदेमंद होते हैं, क्योंकि मांसाहार सुपाच्य नहीं है। यही कारण है कि लोग इस समय मांसाहार से पूरे विश्व में बच रहे हैं।

उन्होंने कहा कि यदि हम एक संतुलित आहार ले रहे हैं तो फिर बाजार से किसी विशेष कैप्सूल की जरूरत नहीं है। हमारे लिए अपनी दिनचर्या और संतुलित आहार ही सबसे इम्यूनिटी बढ़ाने का सबसे बढ़िया जरिया है।

लोगों को इसके लिए संतुलित भोज्य पदार्थ के साथ ही अपनी दिनचर्या पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए। जैसे सुबह उठना, नींद का आना आदि।

उन्होंने कहा कि इस तरह के मामले भी देखने को मिल रहे हैं कि लोग टानिक के कैप्सूल आवश्यकता से अधिक ले ले रहे हैं, जो उनके लिए नुकसानदायक है।

स्वस्थ जीवन जीने का आयुर्वेदिक नियम

जब आप भोजन करे कभी भी तो भोजन का समय थोडा निश्चित करें। ऐसा नहीं की कभी भी कुछ भी खा लिया। हमारा ये जो शरीर है वो कभी भी कुछ खाने के लिए नही है। इस शरीर मे जठर (अमाशय) है, उसमें अग्नि प्रदिप्त होती है।

जठर मे जब अग्नि सबसे ज्यादा तीव्र हो उसी समय भोजन करे तो आपका खाया हुआ, एक एक अन्न का हिस्सा पाचन मे जाएगा और रस मे बदलेगा और इस रस में से मांस, मज्जा, रक्त, मल, मूत्रा, मेद और आपकी अस्थियाँ इनका विकास होगा।

सूर्योदय के लगभग ढाई घंटे तक जठरग्नि सबसे ज्यादा तीव्र होती है। सूर्य का उदय जैसे ही हुआ उसके अगले ढाई घंटे तक जठर अग्नी सबसे ज्यादा तीव्र होती है। इस समय सबसे ज्यादा भोजन करें । इस समय आप कुछ भी खा सकते हैं।

अगर आप को आलू का पराठा खाना है तो सवेरे के खाने में खाईये, मूली का परांठा भी सुबह के खाने में खाईये। मतलब, आपको जो चीज सबसे ज्यादा पसंद है वो सुबह आओ।

रसगुल्ला, खाडी जिलेबी, आपको पसंद है तो सुबह खाईए। सुबह पेट भरके खाईये. पेट की संतुष्टी हुई , मन की भी संतुष्टी हो जाती है। पेट की संतुष्टी से ज्यादा मन की संतुष्टी महत्व की है। हमारा मन खास तरह की वस्तुये जैसे , हार्मोन्स , एंजाईम्स से संचालित है। मन को आज की भाषा में डॉक्टर पिनियल ग्लांड्स कहते हैं। हालाँकि वो है नहीं पिनियल ग्लैंड (मन ) संतुष्टी के लिए सबसे आवश्यक है।

अगर भोजन आपको अगर तृप्त करता है तो पिनियल ग्लैंड आपकी सबसे ज्यादा सक्रिय है तो जो भी एंझाईम्स चाहीए शरीर को वो नियमित रूप में समान अंतर से निकलते रहते है। और जो भोजन से तृप्ति नहीं है तो पिनियल ग्लैंड मे गडबड होती है। और पिनियल ग्लैंड की गडबड पूरे शरीर मे पसर जाती है। और आपको तरह तरह के रोगो का शिकार बनाती है।

अगर आप तृप्त भोजन नहीं कर पा रहे तो निश्चित 10-12 साल के बाद आपको मानसिक क्लेश होगा और रोग होंगे। मानसिक रोग बहुत खराब है। आप सिजोफ्रेनिया डिप्रेशन के शिकार हो सकते है आपको कई सारी बीमारीया आ सकती है। कभी भी भोजन करे तो, पेट भरे ही, मन भी तृप्त हो। ओर मन के भरने और पेट के तृप्त होने का सबसे अच्छा समय सवेरे का है।

दोपहर को भूख लगे है तो थोडा और खा लीजीए। लेकिन सुबह का खाना सबसे ज्यादा। दोपहर का भोजन थोडा कम करिए नाश्ते (सुबह के भोजन) से एक तिहाई कम कर दीजीए और रात का भोजन दोपहर के भोजन का एक तिहाई कर दीजीए। अगर आप सवेरे 6 रोटी खाते है तो दोपहर को 4 रोटी और शाम को 2 रोटी खाईए। भारत में आजकल उल्टा चक्कर चल रहा है. लोग नाश्ता कम करते हैं. लंच थोडा ज्यादा करते हैं और डिनर सबसे ज्यादा करते हैं। भोजन करने का यह तरीका सर्वाधिक नुकसानदायक है।

आयुर्वेद का वैदिक नियम है

नाश्ता सबसे ज्यादा लंच थोडा कम और डिनर सबसे कम करना चाहिए। हमें अंग्रेजो की नक़ल बंद करनी होगी अंग्रेजो की जलवायु भारत की जलवायु से भिन्न है। वे अपनी जलवायु के हिसाब से नाश्ता कम करते हैं क्योंकि वहां पर सूरज के दर्शन कम होते हैं और उनकी जठराग्नि मंद होती है।

भारी नाश्ता उनकी प्रकृति के विरुद्ध है. भारत में तो सूर्य हजारो सालो से निकलता है और अगले हजारो सालों तक निकलेगा! जलवायु के हिसाब से हमारी जठराग्नि बहुत तीव्र है। बिना अधिक कसरत किये हमारी जठराग्नि तीव्र रहती है. इसलिए सुबह का खाना आप भरपेट खाईए।

भोजन की मात्रा – आयुर्वेदिक नियम

मनुष्य को छोडकर जीव जगत का हर प्राणी इस सूत्र का पालन कर रहा है । आप चिडिया को देखो, कितने भी तरह की चिडिया सबेरे सुरज निकलते ही उनका खाना शुरू हो जाता है , और भरपेट खाती है। 6 बजे के आसपास राजस्थान, गुजरात में जाओ सब तरह की चिडीया अपने काम पर लग जाती है। खूब भरपेट खाती है और पेट भर गया तो चार घंटे बाद ही पानी पीती है।

गाय को देखिए सुबह उठतेही खाना शुरू हो जाता है । भैंस, बकरी, घोडा सब सुबह उठते ही खाना खाना शुरू करंगे और पेट भरके खाएँगे। फिर दोपहर को आराम करेंगे तो यह सारे जानवर, जीव-जंतू जो हमारी आँखो से दीखते है और नही भी दिखते ये सबका भोजन का समय सवेरे का हैं। सूर्योदय के साथ ही थे सब भोजन करते है। इसलिए, थे हमसे ज्यादा स्वस्थ रहते है।

सुबह का भोजन – आयुर्वेदिक नियम

तो सुबह के खाने का समय तय करिये । सूरज उगने के ढाई घंटे तक । यानि 9.30 बजे तक, ज्यादा से ज्यादा 10 बजे तक आपक भोजन हो जाना चाहिए। और ये भोजन तभी होगा जब आप नाश्ता बंद करेंगे। आप बाहर निकलिए घरके तो सुबह भोजन कर के ही निकलिए।

दोपहर एक बजे में जठराग्नी की तीव्रता कम होना शुरू होता है तो उस समय थोडा हलका खाए यानि जितना सुबह खाना उससे कम खाए तो अच्छा है। ना खाए तो और भी अच्छा। खाली फल खायें , ज्यूस दही मठठा पिये। शाम को फिर खाये।

शाम का भोजन – आयुर्वेदिक नियम

शाम का भोजन भी जठराग्नि के अनुसार ही करना चाहिए. जठरग्नी सुबह सुबह बहूत तीव्र होगी और शाम को जब सूर्यास्त होने जा रहा है, तभी तीव्र होगी. इसलिए शाम का खाना सूरज छिपने से पहले खा लेना चाहिए क्योंकि सूरज अस्त होने के बाद जठराग्नि भी मंद हो जाती है इसलिए सूरज डुबने के पहले 5.30 बजे – 6 बजे खाईए।

उसके बाद अगर रात को भूख लगे तो दूध पीजिये. दूध के अतिरिक्त कुछ भी न लें. इसका कारण यह है की शाम को सूरज डूबने के बाद हमारे पेट में जठर स्थान में कुछ हार्मोन्स और रस या एंजाईम पैदा होते है जो दूध् को पचाते है। इसलिए सूर्य डूबने के बाद जो चीज खाने लायक है वो दूध् है। तो रात को दूध पी लीजीऐ। उसके बाद जितना जल्दी हो सके सो जाईये।

भोजन के बाद विश्राम के नियम

सुबह और दोपहर के भोजन के बाद 20 से 40 मिनट की विश्रांति (झपकी लें) लेकिन शाम का खाना खाने के बाद कम से कम 500 कदम टहलना चाहिए।

खाना बनाने व खाने के महत्वपूर्ण वैदिक नियम – आज के परिप्रेक्ष में

हम स्वाद के चक्कर में खाना पकाने में वैदिक और आयुर्वेदिक सिद्धांतों की पूरी तरह से अवहेलना कर देते हैं, जिसकी वजह से आज स्वास्थ्य सम्बन्धी कई समस्याएँ आ रही है। अगर कोई ऐसी बिमारी है जो वर्षों से ठीक नहीं हो रही तो खाने में ये आजमा कर देखे।

सूप बनाते समय उसमे दूध नहीं डाले। दही खट्टा हो तो उसमे दूध नहीं डाले। ओट्स पकाते समय उसमे दूध दही साथ साथ न डाले। चाय कॉफ़ी में शहद ना डाले।

पूरी, भटूरे, मिठाइयां डालडा घी में ना बना कर शुद्ध घी में बनाए। नमकीन चावलों में , सब्जी की करी में दूध न डाले। खट्टे फलों के साथ, फ्रूट सलाद में क्रीम या दूध न डाले।

दही बड़ा विरुद्ध आहार है। 4 बजे के बाद केले, दही, शरबत, आइसक्रीम आदि का सेवन ना करे। आटा लगाने के लिए दूध का इस्तेमाल ना करे। गर्मियों में हरी मिर्च और सर्दियों में लाल मिर्च ला सेवन करे।

सुबह ठंडी तासीर की और शाम के बाद गर्म तासीर के खाने का सेवन करे। पकौड़ों के साथ चाय या मिल्क शेक नहीं गरम कढ़ी ले। फलों को सुबह नाश्ते के पहले खाए . किसी अन्य खाने के साथ मिलाकर ना ले। कच्चा सलाद भी खाने के पहले खा ले।

दही वाले रायते को हिंग जीरे का तडका अवश्य लगाएं। दाल में एक चम्मच घी अवश्य डाले। खाली पेट पान का सेवन ना करे। खाने के साथ पानी नहीं ज़्यादा पानी डाला छाछ या ज्यूस या सूप पियें।

अत्याधिक नमक और खट्टे पदार्थ सेहत के लिए ठीक नहीं। बघार लगाने में खूब हिंग, जीरा, सौंफ, मेथीदाना, धनिया पावडर, अजवाइन आदि का प्रयोग करें।

जो अन्न द्विदलीय है (दो भागों में टूटा हुआ) के साथ दही का प्रयोग वर्जित है. उससे नुकसान होगा. अगर खाना ही है तो उससे मेथी, और अजवायन से बघार लें।।