• अनुलोम का अर्थ होता है सीधा और विलोम का अर्थ है उल्टा। यहां पर सीधा का अर्थ है नासिका या नाक का दाहिना छिद्र और उल्टा का अर्थ है-नाक का बायां छिद्र। अर्थात अनुलोम-विलोम प्राणायाम में नाक के दाएं छिद्र से सांस खींचते हैं, तो बायीं नाक के छिद्र से सांस बाहर निकालते है। इसी तरह यदि नाक के बाएं छिद्र से सांस खींचते है, तो नाक के दाहिने छिद्र से सांस को बाहर निकालते है। अनुलोम-विलोम प्राणायाम को कुछ योगीगण ‘नाड़ी शोधक प्राणायाम’ भी कहते है। उनके अनुसार इसके नियमित अभ्यास से शरीर की समस्त नाड़ियों का शोधन होता है यानी वे स्वच्छ व निरोग बनी रहती है। इस प्राणायाम के अभ्यासी को वृद्धावस्था में भी गठिया, जोड़ों का दर्द व सूजन आदि शिकायतें नहीं होतीं।
  • अनुलोम-विलोम प्राणायाम नासिका द्वारा किया जाने वाला अभ्यास है। इसके अभ्यास से कुण्डलिनी शक्ति जागृत होती है तथा इसके ध्यान को धारण करने की भी शक्ति बढ़ती है। इसमें नासिका के दोनों छिद्रों को बारी-बारी से बंद कर श्वास (सांस लेना और छोड़ना) क्रिया की जाती है। इस क्रिया में पहले एक छिद्र से सांस लेकर कुछ क्षण तक अंदर रखने के बाद दूसरे छिद्र से बाहर छोड़ दी जाती है।

अनुलोम-विलोम प्राणायाम करने की विधि

  • इस प्राणायाम का अभ्यास शांत व स्वच्छ हवादार वातावरण में करें। इसके अभ्यास के लिए नीचे दरी या चटाई बिछाकर बैठ जाएं और बाएं पैर को मोड़कर दाईं जांघ पर और दाएं पैर को मोड़कर बाई जांघ पर रखें। अब अभ्यास बाईं नासिका से शुरू करें। दाहिने हाथ के नीचे बाईं हथेली को लगाकर रखें और दाएं हाथ के अंगूठे से दाएं नासिका छिद्र (दाहिने) नाक के छेद को) बंद कर दें। इसके बाद धीरे-धीरे सांस अंदर खींचें। पूरी तरह सांस अंदर भर जाने पर अनामिका या मध्यमा अंगुली से नाक के बाएं छिद्र को बंद कर दें और दाहिने छिद्र से सांस को बाहर छोड़े। सांस लेने व छोड़ने की गति पहले धीरे-धीरे और बाद में तेजी से करें। सांस की तेज गति के समय सांस तेज गति से ले और तेज गति से छोड़ें। श्वासन क्रिया (सांस लेने व छोड़ने) की क्रिया अपनी शक्ति के अनुसार धीरे, मध्यम और तेज करें। तेज गति से सांस लेने व छोड़ने से प्राण की गति तेज होती है। इस तरह नाक के बाएं छिद्र से सांस लेकर दाएं से सांस पूरी तरह बाहर छोड़ते ही नाक के बाएं छिद्र को बंद कर दें और दाएं से सांस लें। फिर दाएं को बंद करके बाएं से सांस को बाहर निकाल दें। इस तरह दोनों छिद्रों से इस क्रिया को 1 मिनट तक करने के बाद थकावट महसूस होने पर कुछ देर तक आराम करें और पुन: इस क्रिया को करें। इस तरह इस क्रिया को पहले 3 मिनट तक और फिर धीरे-धीरे बढ़ाते हुए 10 मिनट तक करें। इस प्राणायाम का अभ्यास सभी को कम से कम 5 मिनट तक और अधिक से अधिक 10 मिनट तक करना चाहिए। 10 मिनट से अधिक समय तक इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए। गर्मी के मौसम में अनुलोम-विलोम प्राणायाम का अभ्यास 3 से 5 मिनट तक ही करना चाहिए। इस प्राणायाम को करने से कुण्डलिनी शक्ति जागृत होती है। इस क्रिया में श्वसन करते समय ओम का ध्यान व चिंतन करते रहने से मन ध्यान के धारण योग्य बन जाता हैं।

अनुलोम-विलोम प्राणायाम से रोगों में लाभ

  • इस प्राणायाम के अभ्यास से स्वच्छ वायु का शरीर में प्रवेश होने से समस्त नाड़ियां जिनकी संख्या 72000 है, की शुद्धि होती है। जिससे शरीर स्वस्थ, कांतिमय एवं शक्तिशाली बनता है। इससे मन में उत्पन्न होने वाली चिंता दूर होती है और मन में अच्छे विचार उत्पन्न होते हैं। इससे मन प्रसन्न और चिंता से उत्पन्न होने वाला डर दूर हो जाता है। इससे कॉलेस्ट्रोल, ट्रग्लिसराइडस, एच.डी.एल या एल.डी.एल आदि की अनियमिताएं दूर होती हैं। यह सर्दी, जुकाम , पुराना नजला, खांसी, टॉन्सिल (गले की गांठे) ठीक करता है तथा इससे त्रिदोष (वात, कफ, पित्त) आदि के विकार दूर होते हैं। इसके नियमित अभ्यास से 3 से 4 महीने में ही हृदय में उत्पन्न रुकावट 30 से 40 प्रतिशत समाप्त हो जाती है।
  • अनुलोम-विलोम प्राणायाम का नियमित अभ्यास करने से सन्धिवात (आमवात, गठिया, जोड़ों का दर्द), कम्पवात, स्नायु दुर्बलता आदि सभी रोग दूर हो जाते हैं तथा साइनस , अस्थमा आदि में लाभ होता है। यह वात रोग, मूत्ररोग, मर्दाना कमजोरी, अम्लपित्त, शीतपित्त आदि सभी रोगों को दूर करता है।
  • फेफड़े शक्तिशाली होते है। सर्दी, जुकाम व दमा की शिकायतों से काफी हद तक बचाव होता है। हृदय बलवान होता है। हार्ट की ब्लाँकेज खुल जाते है।
  • हाई और लॉ दोनो रक्त चाप ठिक हो जायेंगे। आर्थराटीस, रोमेटोर आर्थराटीस, कार्टीलेज घीसना ऐसी बीमारीओंको ठीक हो जाती है।टेढे लीगामेंटस सीधे हो जायेंगे। व्हेरीकोज व्हेनस ठीक हो जाती है।
  • कोलेस्टाँल, टाँक्सीनस, आँस्कीडण्टस इसके जैसे विजतीय पदार्थ शरीर के बहार नीकल जाते है। सायकीक पेंशनट्स को फायदा होता है।
  • कीडनी नेचरली स्वछ होती है, डायलेसीस करने की जरुरत नही पडती। सबसे बडा खतरनाक कँन्सर तक ठीक हो जाता है। मेमरी बढाने की लीये। सर्दी, खाँसी, नाक, गला ठीक हो जाता है।
  • ब्रेन ट्युमर भी ठीक हो जाता है। सभी प्रकार के चर्म समस्या मीट जाती है। मस्तिषक के सम्बधित सभि व्याधिओको मीटा ने के लिये।
  • पर्किनसन, प्यारालेसिस, लुलापन इत्यादी स्नयुओ के सम्बधित सभि व्याधिओको मीटा ने के लिये। सायनस की व्याधि मीट जाती है। डायबीटीस पुरी तरह मीट जाती है।
  • टाँन्सीलस की व्याधि मीट जाती है। थण्डी और गरम हवा के उपयोग से हमारे शरीर का तापमान संतुलित रेहता है। इससे हमारी रोग-प्रतिकारक शक्ती बढ जाती है।

    अनुलोम-विलोम प्राणायाम मेंं सावधानियां

    • कमजोर और एनीमिया से पीड़ित रोगी इस प्राणायाम के दौरान सांस भरने और सांस निकालने (रेचक) की गिनती को क्रमश: चार-चार ही रखें। अर्थात चार गिनती में सांस का भरना तो चार गिनती में ही सांस को बाहर निकालना है। स्वस्थ रोगी धीरे-धीरे यथाशक्ति पूरक-रेचक की संख्या बढ़ा सकते है।
    • कुछ लोग समयाभाव के कारण सांस भरने और सांस निकालने का अनुपात 1:2 नहीं रखते। वे बहुत तेजी से और जल्दी-जल्दी सांस भरते और निकालते है। इससे वातावरण में व्याप्त धूल, धुआं, जीवाणु और वायरस, सांस नली में पहुंचकर अनेक प्रकार के संक्रमण को पैदा कर सकते है।
    • अनुलोम-विलोम प्राणायाम करते समय यदि नासिका के सामने आटे जैसी महीन वस्तु रख दी जाए, तो पूरक व रेचक करते समय वह न अंदर जाए और न अपने स्थान से उड़े। अर्थात सांस की गति इतनी सहज होनी चाहिए कि इस प्राणायाम को करते समय स्वयं को भी आवाज न सुनायी पड़े।