• हमारी जीवनशैली में आए बदलाव का सीधा असर हमारे मानसिक स्वास्थ्‍य पर पड़ता है। कम उम्र में तनाव और अवसाद की बीमारियों ने हमारे जीवन में गहरी पैठ बना ली है।  अधिक तनाव और अवसाद के गंभीर परिणाम दिमागी दौरे के रूप में भी देखने को मिलते हैं। इसके चलते अपने हर छोटे-बड़े काम के लिए उसकी निर्भरता किसी दूसरे व्यक्ति पर हो जाती है। अनके मरीजों में बोलने, समझने, लिखने, पढ़ने व स्मृति की क्षमताएं घट जाती हैं।
  • जब ये चीजें अपने चरम पर पहुंच जाती हैं तो ब्रेन स्ट्रोक हो जाता है। हाई ब्लडप्रेशर, डायबिटीज, हाई कोलेस्ट्रॉल और अत्यधिक मोटापा स्ट्रोक के कुछ कारण हैं। वहीं हृदय रोगों के कारण भी स्ट्रोक का जोखिम बढ़ जाता है। 

अलग-अलग प्रकार के स्ट्रोक : 

  • जब मस्तिष्क की किसी रक्तवाहिका में खून का थक्का जमने से स्ट्रोक होता है, तो उसे सेरेब्रल थ्रॉम्बोसिस कहते हैं। एक होता है सेरेब्रल हैमरेज यानी जब मस्तिष्क की कोई रक्तवाहिका फट जाती है और आसपास के ऊतकों में खून का रिसाव होने लगता है। इससे एक तो मस्तिष्क के विभिन्ना भागों में खून का प्रवाह कट जाता है। दूसरे, लीक हुआ खून मस्तिष्क पर दबाव डालता है। सेरेब्रल एम्बोलिज्म से भी ब्रेन अटैक आता है। इस अवस्था में शरीर के किसी अन्य भाग में खून का थक्का बनता है और फिर वह रक्त के बहाव के साथ मस्तिष्क में पहुंच जाता है। इन सभी अवस्थाओं वाले स्ट्रोक का परिणाम एक ही है कि रक्त संचरण बाधित होने से मस्तिष्क को ऑक्सीजन और पोषण मिलना बंद हो जाता है तथा उसमें फैले न्यूरॉन्स तेजी से मरने लगते हैं। मस्तिष्क के जिस भाग में क्षति हुई है, उससे संबंधित शरीर का अन्य भाग नाकाम हो जाता है, जैसे कि पक्षाघात (पैरालिसिस) हो जाना। इसलिए ब्रेन स्ट्रोक आते ही तुरंत मरीज को चिकित्सकीय सहायता मिलना चाहिए ताकि क्षति कम हो।

ब्रेन स्ट्रोक के लक्षण : 

  • इन लक्षणों से पहचाना जा सकता है कि व्यक्ति को ब्रेन स्ट्रोक हुआ है: शरीर में अचानक बेहद कमजोरी और शरीर का एक तरफ का हिस्सा अशक्त महसूस होना बेजान-सा एहसास (नम्बनेस) कंपकंपी, ढीलापन, हाथ-पैर हिलाने में नियंत्रण का अभाव नजर का धुंधलाना, एक आंख की दृष्टि जाना जुबान का अचानक तुतलाने, लड़खड़ाने लगना दूसरे क्या कह रहे हैं, यह सहसा समझ न पाना जी मितलाना, उल्टी, चक्कर आना अचानक गंभीर सिरदर्द यदि स्ट्रोक गंभीर है, तो व्यक्ति बेहोश भी हो सकता है। जान बचाना पहली प्राथमिकता तुरंत चिकित्सकीय सहायता में चिकित्सक आवश्यक दवा व अन्य ट्रीटमेंट देंगे। अच्छी नर्सिंग केयर से मरीज की हालत ज्यादा बिगड़ने से बच सकती है। इमरजेंसी ट्रीटमेंट के बाद भी रीहैबिलिटेटिव थैरापीज जैसे फिजियोथैरापी, स्पीच थैरापी आदि की जरूरत होती है। ये सब जान बचाने के बाद की बातें हैं। सडन स्ट्रोक से व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है। स्ट्रोक के कारण हुआ नर्व डैमेज स्थायी भी हो सकता है। इसलिए स्वस्थ रहते ही सावधानी रखना, स्वस्थ जीवनशैली अपनाना और लक्षण दिखते ही तुरंत चिकित्सकीय सहायता के लिए पहुंचना जरूरी है। 

स्ट्रोक से बचने के लिए उपाय :

  • सामान्य जीवनशैली में भी कुछ चीजें याद रखना चाहिए, जैसे: सिगरेट न पीना ब्लड प्रेशर को नियंत्रण में रखना। समय-समय पर रक्तचाप की जांच कराना व डॉक्टर द्वारा बताई गई दवाइयों को नियमित रूप से लेना वजन बढ़ने न देना नमक कम खाना हैल्दी डाइट और नियमित व्यायाम ब्लड शुगर पर ध्यान देना कोलेस्ट्रॉल को न बढ़ने देना।

आइए जानते हैं इस बीमारी का इलाज :

  • इस्कीमिक स्ट्रोक का इलाज करने के लिए विशेषज्ञ डॉक्टर को जल्द से जल्द मस्तिष्क में रक्त के प्रवाह को बहाल करना होता है। दवाओं के जरिये आपातकालीन उपचार के अंतर्गत थक्के को घुलाने वाली थेरेपी स्ट्रोक के तीन घंटे के भीतर शुरू हो जानी चाहिए। अगर यह थेरेपी नस के जरिये दी जा रही है, तो जितना शीघ्र हो, उतना अच्छा है। शीघ्र उपचार होने पर न केवल मरीज के जीवित रहने की संभावना बढ़ती है बल्कि जटिलताएं होने के भी खतरे घट जाते हैं।
  • इसके अलावा एस्पिरिन नामक दवा भी जाती है। एस्पिरिन रक्त के थक्के बनने से रोकती है। इसी तरह टिश्यू प्लाजमिनोजेन एक्टिवेटर संक्षेप में ‘टीपीए (रक्त के थक्के को दूर करने की दवाई) का नसों में इंजेक्शन भी लगाया जाता है। टीपीए स्ट्रोक के कारण खून के थक्के को घोलकर रक्त के प्रवाह को फिर बहाल करता है।
  • मस्तिष्क तक सीधे दवाएं पहुंचाना डॉक्टर पीडि़त व्यक्ति के कमर (जांघ)की एक धमनी(आर्टरी) में एक लंबी, पतली ट्यूब (कैथेटर) को डालकर इसे मस्तिष्क में स्ट्रोक वाली जगह पर ले जाते हैं। कैथटर के माध्यम से उस भाग में टीपीए को इंजेक्ट करते हैं।
  • यांत्रिक रूप से थक्का हटाना:डॉक्टर यांत्रिक रूप से क्लॉट को तोड़ने और फिर थक्के को हटाने के लिए पीडि़त शख्स के मस्तिष्क में एक छोटे से उपकरण को डाल सकते हैं और इसके लिए वे एक कैथेटर का उपयोग कर सकते हैं।

अन्य प्रक्रियाएं :

  • मरीज की स्थिति के अनुसार स्ट्रोक का इलाज करने के लिए कैरोटिड (दिमाग की ओर जाने वाली सबसे बड़ी धमनी) एंडारटेरेक्टॅमी के अंतर्गत सर्जन कैरोटिड धमनी से अवरोध(प्लॉक) को हटाते हैं। इस प्रक्रिया में, सर्जन पीडि़त व्यक्ति की गर्दन के सामने एक चीरा लगाकर कैरोटिड धमनी को खोलते हैं और कैरोटिड धमनी में रुकावट पैदा करने वाले प्लॉक हो हटाते हैं।