• अरनी की दो जातियां होती हैं। छोटी और बड़ी। बड़ी अरनी के पत्ते नोकदार और छोटी अरनी के पत्तों से छोटे होते हैं। छोटी अरनी के पत्तों में सुगंध आती हैं। लोग इसकी चटनी और सब्जी भी बनाते हैं। श्वासरोगवाले को अरनी की सब्जी अवश्य ही खाना चाहिए।
  • यह तीखा, गर्म, मधुर, कड़वा, फीका और पाचनशक्तिवर्द्धक  होता है तथा वायु,जुकाम, कफ, सूजन, बवासीर, आमवात, मलावरोध, अपच, पीलिया, विषदोष और आंवयुक्त दस्त आदि रोगों में लाभकारी है।
  • छोटी अरनी, बड़ी अरनी के समान ही गुणकारी होती है यह वात-द्वारा उत्पन्न हुई सूजन का नाश करती है। 

इसके फायदे:

  • सूजन:
    • बड़ी अरनी के पत्तों को पीसकर इसकी पट्टी सूजन पर बांधना चाहिए। इससे सूजन ठीक हो जाती है।
    • अरनी की जड का 100 मिलीलीटर काढ़ा बनाकर सुबह-शाम दोनों समय पीने से पेट का दर्द, जलोदर और सभी प्रकार की सूजन मिट जाती है।
    • अरनी की जड़ और पुनर्नवा की जड़ दोनों को एक साथ पीसकर गर्म कर लेप करने से शरीर की ढीली पड़ी हुई सूजन उतर जाती है।
  • त्रिदोष (वातकफऔरपित्तगुल्म :
    • बड़ी या छोटी अरनी की जड़ों के 100 मिलीलीटर गर्म काढ़े में 30 ग्राम गुड़ मिलाकर देने से त्रिदोष गुल्म दूर हो जाते हैं।
    • बड़ी या छोटी अरनी के गर्म काढे़ को गुड़ डालकर पिलाना चाहिए। इससे वात, पित्त और कफ नष्ट हो जाता है।
  •  पक्षाघात (लकवा) :
    • प्रतिदिन काली अरनी की जड़ के तेल का लेप करके सेंकना चाहिए। इससे पक्षाघात, जोड़ों का दर्द और सूजन नष्ट हो जाती है।
  •  हृदय की कमजोरी :
    • अरनी के पत्ते और धनिये का 60-70 मिलीलीटर काढ़ा पिलाने से हृदय की दुर्बलता मिटती है।
  • उदर (पेटरोग :
    • अरनी की 100 ग्राम जड़ों को लेकर लगभग 470 मिलीलीटर पानी में धीमी आंच पर 15 मिनट तक उबालें। इसे 100 मिलीलीटर  की मात्रा में दिन में 2 बार पीने से पाचनशक्ति प्रबल होती है। यह औषधि पौष्टिक भी है।
    • अरनी के पत्तों का साग बनाकर खाने से पेट की बादी मिटती है।