छुई मुई का पौधा अपने आप में थोडाअजीब तरह का पौधा है साथ ही छुई मुई का दूसरा नाम लाजवंती भी हैइसके इन दोनों नामों के पीछे भी कारण हैजैसे ही हम इस पौधे को छूते हैं ये खुद को सिकोड़कर छोटे रूप में बदल जाता हैउस समय ऐसा प्रतीत होता है मानो ये हमसे शर्मा रहा होऔर यही कारण है कि इसकानाम लाजवंती पड़ा.

  • छुई मुई का वानस्पतिकनाम माईमोसा पुदींका भी है जबकिदेसी नाम लजोली भी हैइसके फूल गुलाबी रंग के होते हैंजो देखने में बहुत आकर्षक औरसुन्दर प्रतीत होते हैं.
  • छुई-मुई के क्षुप (पौधे) छोटे होते हैं। यह भारत में गर्म प्रदेशों में पाया जाता है। इसका पौधे जमीन पर फैला हुआ या थोड़ा सा उठा होता है। इसके 30 से 60 सेमी तक के क्षुप पाये जाते हैं। इसके पत्ते चने के पत्तों के समान होते हैं। 

छुई-मुई के फूलों का रंग हल्का बैंगनी होता है और इस फूल के ही ऊपर गुलाबी रंग के 3 से 9 सेमी लंबी फली लगती है जिसमें 3 से 5 बीज होते हैं। बारिश के महीनों में छुई-मुई में फल लगते हैं। छुई-मुई की खासियत है कि इसको छूने से ही यह सिकुड जाती है। इसकी अनेक प्रजातिया होती हैं।

विभिन्न रोगों में प्रयोग :

1.अजीर्ण : छुई-मुई के पत्तों का 30 मिलीलीटर रस निकालकर पिलाने से अजीर्ण नष्ट हो जाता है।
2.पीलिया : छुई-मुई के पत्तों का रस निकालकर पीने से कामला या पीलिया रोग दो हफ्ते में दूर हो जाता है।
3.पथरी : 

    • छुई-मुई की 10 मिलीलीटर जड़ का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पीने से पथरी गलकर निकल जाती है।
    • लाजवन्ती (छुई-मुई) के पंचांग का काढ़ा बनाकर प्रतिदिन सुबह-शाम पीयें। इसके काढ़े से पथरी घुलकर निकल जाती है तथा मूत्रनलिका पर आई सूजन मिट जाती है।

4.मधुमेह : छुई-मुई की जड़ का काढ़ा 100 मिलीलीटर बनाकर रोजाना सुबह-शाम देने से मधुमेह का रोग ठीक होता है।
5.पेशाब का अधिक आना :छुई-मुई के पत्तों को पानी में पीसकर नाभि के निचले हिस्से में लेप करने से पेशाब का अधिक आना बंद हो जाता है।

6.रक्तातिसार (खूनी दस्त) :

  • छुई-मुई की जड़ का चूर्ण 3 ग्राम, दही के साथ रोगी को खिलाने से खूनी दस्त जल्दी बंद होता है।
  • छुई-मुई की जड़ के 10 ग्राम चूर्ण को 1 गिलास पानी में काढ़ा डालकर बनायें जब थोड़ा सा रह जाये तब बचे काढ़े को सुबह-शाम पिलाने से खूनी दस्त बंद हो जाता है।