शरीर का एक सामान्य तापक्रम होता है, जिससे ताप बढ़े तो ज्वर का होना कहा जाता है। आयुर्वेद में ज्वर के विषय में विस्तार से विवरण दिया गया है तथा आठ प्रकार के ज्वरों की विस्तृत चर्चा भी है। 

आगन्तुक बुखार विभिन्न कारणों से उत्पन्न होता हैं लेकिन यह किसी भी कारण से हुआ हो उस कारण को दूर करना ही इसकी चिकित्सा होती है।

आगन्तुक ज्वर के प्रकार:

  1. विषज्वर (यह स्थावर या जंगम विष के कारण पैदा होता है)।
  2. औषध गन्ध ज्वर (किसी तेज दवा को सूंघने के कारण होता है)। तीसरा- कामज्वर (सेक्स में बाधा के कारण पैदा होने वाला बुखार)।
  3. भयज्वर (किसी भी कारण भय से उत्पन्न होने वाला बुखार)।
  4. क्रोधज्वर (अधिक गुस्सा करने से होने वाला बुखार)।
  5. भूतज्वर (भूत-प्रेत आदि के कारण उत्पन्न होने वाला बुखार)।
  6. अभिचारज्वर (किसी तान्त्रिक-प्रयोग के कारण उत्पन्न होने वाला ज्वर)।

आगन्तुक ज्वर के उपचार:

1. विष ज्वर : 

  • विष बुखार किसी प्रकार के स्थावर या जंगम विष के कारण उत्पन्न होता है। इस बुखार में रोगी का चेहरा सांवले रंग का हो जाता है, उसके शरीर में जलन होती है तथा सुई चुभने जैसा महसूस होता है। इसके अलावा खाने में अरुचि होना, प्यास अधिक लगना तथा दस्त आदि होते हैं।

2. औषधगन्ध ज्वर : 

  • यह बुखार किसी तेज दवा या अन्य वायु की तेज गन्ध या दुर्गन्ध को सूंघने के कारण उत्पन्न होता हैं। इस बुखार में रोगी के सिर में दर्दउल्टीछींक तथा हिचकी आती है। 
  • रोगी का चेहरा फीका (मुरझाया हुआ चेहरा) सिकुड़ा हुआ-सा हो जाता है। रात के समय घबराहट, प्यास तथा गर्मी बढ़ जाती हैं। रोगी की नाड़ी की गति 90 से 120 तक हो जाती है। 
  • खूनी दस्तप्रलाप, तिल्ली (प्लीहा), जिगर (लीवर) और शरीर पर लाल रंग के चकत्ते हो जाते हैं। 20 से 30 दिन तक इस बुखार में `टाइफाइड बुखार´ के लक्षण होने का डर लग रहता है। 
  • औषधगन्ध बुखार में उपचार करने के लिए एरण्ड के तेल का जुलाब दे सकते हैं और “सर्वगन्ध काढ़ा´´ और अष्टगन्ध की धूनी का प्रयोग कर सकते हैं।

3. अभिघात ज्वर : 

  • चोट के कारण होने वाले बुखार को अभिघात ज्वर कहते हैं। इस बुखार के होने पर रोगी कोघी पिलाना तथा मलना, मांस-रस तथा भात (चावल) खिलाना लाभकारी होता है

4. मानस ज्वर :

  •  मस्तिष्क में अशान्ति, चिन्ता आदि के कारण होने वाले बुखार को मानस ज्वर कहते हैं। इस बुखार में रोगी के साथ अच्छा व्यवहार और आत्मीयता जरूरी होती है।

5. भय ज्वर : 

  • इस ज्वर में रोगी को काफी डर लगता है। इसके उसके मुंह से आंय-बांय-शांय (प्रलाप करना) की आवाजें आती है। इस बुखार की चिकित्सा के लिए सबसे पहले रोगी के भय को दूर करने का प्रयास करना चाहिए। 
  • चूंकि इस बुखार में वात, पित्त और कफ बढ़ जाते हैं इसलिए रोगी की स्थिति को जानने के बाद ही चिकित्सा करनी चाहिए।

6. क्रोध ज्वर : 

  • इस बुखार में पित्त कुपित होता है इसलिए इसमें पित्तशामक उपचार लाभकारी होता है। इस बुखार में रोगी का शरीर कांपता रहता है।

विशेष :

          किसी भी प्रकार के आगन्तुक बुखार में `लंघन´ कराना नहीं चाहिए। इन बुखारों में रोगी को मांस-रस तथा भात का सेवन करने से लाभ मिलता है।

विनम्र अपील : प्रिय दोस्तों यदि आपको ये पोस्ट अच्छा लगा हो या आप आयुर्वेद को इन्टरनेट पर पोपुलर बनाना चाहते हो तो इसे नीचे दिए बटनों द्वारा Like और Share जरुर करें ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इस पोस्ट को पढ़ सकें हो सकता है आपके किसी मित्र या किसी रिश्तेदार को इसकी जरुरत हो और यदि किसी को इस उपचार से मदद मिलती है तो आप को धन्यवाद जरुर देगा।