➡ रसभरी (Cape gooseberry or Physalis) : 

  • रसभरी (Cape gooseberry or Physalis) एक अत्यंत पौष्टिक फल है। रसभरी एक विपुलता से मिलने वाला फल है, जो कई लाभकारी गुणों से भरपूर है। इसका भरपूर उपयोग हमें कई रोगों से बचने में सहायता तथा पौष्टिकता देता है। इस वनस्पति में इतने स्वास्थयवर्धक व रोगनिवारक गुण हैं कि इस का उपभोग न करना, स्वास्थ्य के प्रति एक बड़ी नज़रअंदाजी हो सकती है। रसभरी एक ऐसा फल होता है जो जंगली घास के बीच अपने आप ही ऊग जाता है। इसकी खेती करने की जरुरत नहीं पड़ती है। रसभरी दो तरह के होते है एक काले रंग का होता है जो अकार में भी पीले रंग वाले रसभरी से छोटा होता है। रसभरी खाने में जितना स्वादिस्ट होता है उतना ही आपके सेहत के लिए भी फायदेमंद होता है। यह फल औषधीय गुणों से भरपूर होता है। रसभरी शरीर में वसा को कम करने वाले हार्मोन को सक्रिय करता है । रसभरी के दुनिया भर में अलग अलग नाम हैं।  अलग अलग देशों में अन्य नाम Cape gooseberry, Physalis, Golden berry, Peruvian Ground Cherry, Poha, Poha Berry आदि नामो से भी इसे जाना जाता है। भारत में रसभरी को मकाओ, तेपारियो, तिपारी, बुड्डेहन्नू, डोड्डाबड, पोपटी, चिर्बोट, फोपती, कुंतली, टंकारी, तंकासी, भोलाँ, पोत्तिपल्लम, बुड्डाबुसरा, बुसरताया इत्यादि स्थानीय नामों से जानते हैं। www.allayurvedic.org
  • भारत में जिस रसभरी (Cape gooseberry or Physalis) को खरपतवार माना जाता है, वास्तव में पोषक तत्वों का भण्डार है। 140 ग्राम की आहारमात्रा में हमारी नित्य ज़रूरत का विटामिन-B3 24.50%, विटामिन-C 17.11% यानि नीम्बू से दोगुना, विटामिन-B1 12.83% व आयरन 17.50% तक मिल जाते है। इसके अतिरिक्त इसमें प्रोटीन, फॉस्फोरस, कैल्शियम, विटामिन-A व B2 भी प्रचुरता में रहते हैं। इसमें मिलने वाले विशेष वानस्पतिक रसायन ही इसे विशिष्ठ बनाते हैं जिनमें physalins, anthocyanins, alkaloids, withanolides व flavonoids मुख्य हैं। आइये जानते है रसभरी (Cape gooseberry or Physalis) के चमत्कारी फायदों के बारे में। 

➡ रसभरी (Cape gooseberry or Physalis) के 15 चमत्कारी फायदे :

  1. हड्डियाँ : अगर आप हड्डियों से जुड़ी समस्या से भी परेशान हैं तो रसभरी आपकी मदद कर सकता है। इसमें पेक्टिन पाया जाता है जो शरीर में कैल्शियम और फॉस्फोरस की सही मात्रा बनाए रखता है।
  2. लिवर और किडनी : लिवर व किडनी की fibrosis ऐसा रोग है जिसमें इन अंगों में रेशे पनप जाते हैं. शोध से सिद्ध हुआ है कि रसभरी का उपयोग न केवल इन रोगों से लड़ता है बल्कि इनसे बचाता भी है।
  3. कैंसर : रसभरी में पॉलीफिनॉल और केरिटिनॉयड्स पाया जाता है जो कैंसर से लड़ने में सक्षम होता है। रसभरी जो काले रंग का होता है वो आपके आंतों और फेफड़ों के कैंसर को बचाव करने में मदद करता है।
  4. एंटीऑक्सीडेंट : पश्चिमी देशों में रसभरी का उपयोग लिवर रोगों में, मलेरिया, गठियावात अथवा आर्थराइटिस, अस्थमा, त्वचारोग व कैंसर इत्यादि में किया जाता है। शोध प्रमाणित करते हैं कि रसभरी में एंटीऑक्सीडेंटस होने के कारण ही ये गुण मिल पाते हैं।
  5. आर्थराइटिस या गठिया : नियासिन अथवा विटामिन B3 को रक्त को हर अंग में ले जाने की दक्षता रहती है. जब हर अंग में रक्त सुचारू ढंग से पहुंचेगा तो आर्थराइटिस जैसे रोग पनप नहीं पाते। रसभरी में नियासिन की प्रचुरता के कारण इसे आर्थराइटिस के लिये रामबाण माना जाता है।
  6. अल्झाइमर, समझ-परख की कमी या स्मृतिभ्रंश : उम्र के बढ़ाव के साथ, हमारे समझ परख तंत्र भी एक प्रकार की पतली तह (plaque) से ग्रसित हो जाते हैं, जिस कारण हमें समझने, परखने व याद रखने में परेशानी होने लगती है. बढ़ी उम्र के इन रोगों में अल्झाइमर (Alzheimer’s) व स्मृतिभ्रंश (dementia) मुख्य हैं। रसभरी कई प्रकार के एंटीऑक्सीडेंटस से भरी होती है, जिनमें से कुछ विटामिन C पर निर्भर होते हैं. यह एंटीऑक्सीडेंटस उम्र के बढाव को रोकते हैं व समझ परख में होने वाली कमी से भी बचाते हैं। www.allayurvedic.org
  7. मधुमेह या डायबिटीज : रसभरी डायबिटीज से जूझ रहे लोगों के लिए भी फायदेमंद होता है। इसके लिए रसभरी को 2 कप पानी में तब तक उबालें जब तक रसभरी गल कर एक कप हो जाए फिर इसका खाली पेट प्रतिदिन सेवन करे, यह डायबिटीज से छूटकारा दिलाता है।
  8. आँखों के लिए : रसभरी में विटामिन ए अच्छी मात्रा में पाया जाता है। इसे रोजाना खाने में शामिल करने से ये शरीर में 14 प्रतिशत तक विटामिन ए की आपूर्ति कर देता है। इसको खाने से आप आंखों से जुड़ी बीमारियों से बच सकते हैं। उत्तम दृष्टि का अनुभान उनसे ही मिल सकता है जो इससे वंचित हों या ग्रसित हों. बेहतर द्रष्टि के लिये विटामिन A बेहद ज़रूरी है। रसभरी में इसकी मात्रा प्रचुरता में पाई जाती है जो हमें दृष्टि सम्बन्धी विकारों व अन्य जैसे रात्रि दृष्टिमंड्या से बचा सकती है।
  9. ह्रदय रोग : रसभरी में विटामिन B 1 जिसे थायमिन (Thiamin) कहते हैं, विपुलता में मिलता है। यह विटामिन acetylcholine के निर्माण के लिये उत्तरदायी है जो हमारी कोशिकाओं में आपसी संवाद स्थापित करने के लिये जाना जाता है। जब जब कोशिकाओं का आपसी संवाद बिगड़ता है तो ह्रदय रोग जैसे विकार पनपने लग जाते हैं। B1 से परिपूर्ण होने के कारण रसभरी ह्रदय रोग से बचने में हमारी सहायता करती है।
  10. गर्भकाल या गर्भावस्था : गर्भकाल में बच्चे के अच्छे विकास के लिये, प्रसूता महिलाओं की आयरन की मांग बढ़ जाती है. उन्हें लगभग 27mg आयरन रोज़ चाहिए होता है. इस आयरन की भरपाई अनाज, फलियों, हरी पत्तेदार सब्जियों व सूखे मेवों से की जाती है. आहार से प्राप्त आयरन की मात्रा रसभरी के उपयोग से बढ़ायी जा सकती है।
  11. पीलिया : केरल के शोला जंगलों में रहने वाली मुथुवन जनजाति, रसभरी का उपयोग पीलिया अथवा जॉन्डिस के उपचार में करती है।
  12. दमा और मूत्र विकार : कोलंबिया के लोग इसके पत्तों के काढ़े का उपयोग दमा रोग के लिये व मूत्रल औषधि के रूप में करते हैं।
  13. सूजन : सूजन के उपचार लिये, दक्षिण अफ्रीका में इसके पत्तों को गरमा कर सेंक दिया जाता है.
  14. पेट के विकार : अफ्रिका की ज़ुलु जनजाति इसके पत्तों के आसव का उपयोग बच्चों के पेट सम्बन्धी रोगों के लिये करती है.

➡ रसभरी (Cape gooseberry or Physalis) का सेवन करने का तरीका :

  1. पके पलों का सीधा उपयोग करें, फ्रूट सलाद के रूप में ताज़ा, या जैम या चटनी, सॉस बनाकर इसका उपयोग सालभर किया जा सकता है।
  2. आइसक्रीम या कस्टर्ड व्यंजनों में मिला सकते है।
  3. फलों को सुखा कर किशमिश बना कर साल भर उपयोग कर सकते हैं; जैसे कि अंगूर, आलूबुखारा, पल्म, खुमानी इत्यादि के बनाते हैं।

➡ रसभरी (Cape gooseberry or Physalis) की एक सावधानी :

  • रसभरी (Cape gooseberry or Physalis) सोलेनेसी (Solanaceae) परिवार से सम्बन्ध रखती है। ये वही रखानदान है जिसके अन्य सदस्य आलू, टमाटर, बैंगन इत्यादि होते है। रसभरी व इस परिवार की कोई भी सब्जी या फल को, जो हरा कच्चा हो, नहीं खाना चाहिए। कच्चे रहने पर ये विषयुक्त होते हैं। पकने पर या उबालने पर इन सबके विष समाप्त हो जाते हैं।

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