★ गूलर ऐसी औषिधि है जो पुरुष और स्त्री के सभी गुप्त रोगों में करती है चमत्कारिक फायदे ★

गूलर का पेड़ भारत में हर जगह पाया जाता ही। यह एक हमेशा हरा रहने वाला पेड़ है। इसे उदंबर, गूलर, गूलार उमरडो, कलस्टर फिग आदि नामों से जाना जाता है। इसका लैटिन नाम फाईकस ग्लोमेरेटा कहा जाता है।
गूलर का पेड़ बड़ा होता है तथा यह उत्तम भूमि में उगता है। इसका तना मोटा होता है। गूलर के पत्ते छोटे कोमल से होते हैं। इसका फूल गुप्त होता है। इसमें छोटे-छोटे फल होते हैं जो कच्चे होने पर हरे और पकने पर लाल हो जाते हैं। फल स्वाद में मधुर होते हैं। फलों के अन्दर कीट होते है जिनके पंख होते हैं। इसलिए इसे जन्तुफल भी कहा जाता है। इसकी छाल भूरी सी होती है। यह फाईकस जाति का पेड़ है और इसके पत्ते तोड़ने पर लेटेक्स या दूध निकलता है।
गूलर के फल खाने योग्य होते है परन्तु उनमें कीढे होते हैं इसलिए इसको अच्छे से साफ़ करके ही प्रयोग किया जाना चहिये।
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★ आयुर्वेदिक गुण [Ayurvedic Properties and Action on body] :
गूलर शीतल, रुखा, भारी, मधुर, कसैला, घाव को ठीक करने वाला, रंग सुधारने वाला, पित्त-कफ और रक्त विकार को दूर करने वाला है।
यह पाचक और वायुनाशक है। यह रक्तप्रदर, रक्तपित्त तथा खून की उल्टी को दूर करने वाला है।
इसका दूध टॉनिक है जो की शरीर को बल देता है।
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★  छाल [Dried bark] :
• रस (Taste): कषाय/Astringent
• गुण (Characteristics): गुरु/Heavy, रूक्ष/Dry
• वीर्य (Potency): शीत/ Cool
• विपाक (Post Digestive Effect): कटु/Pungent
• Action: कफ, पित्त को संतुलित करना; मोटापा कम करना; शरीर में से दूषित पदार्थ निकालना।
• Dose of bark: 3-6 g चूर्ण की तरह in powder form, 20-30 g काढा के लिए for decoction.
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★ सूखे फल [Dried fruits] :
• रस (Taste):कषाय/Astringent, मधुर/Sweet
• गुण (Characteristics):गुरु/Heavy, रूक्ष/Dry
• वीर्य (Potency):शीत/Cool
• विपाका (Post Digestive Effect):मधुर/Sweet
• Action: कफ, पित्त को संतुलित करना;
• Dose of dried fruits: 10-15g in powder form.
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★ गूलर के औषधिया प्रयोग [Medicinal Uses of Gular] :
गूलर को आयुर्वेद में हजारों साल से चिकित्सीय रूप से प्रयोग किया जाता रहा है। इसमें खून साफ़ करने के, गर्भाशय को शुद्ध करने के, वीर्य वर्धक और डायबिटीज को दूर करने के गुण पाए जाते हैं। औषधीय प्रयोग के लिए इसके पत्ते, छाल, जड़ तथा दूध सभी का इस्तेमाल किया जाता है।
गूलर का प्रयोग विविध रोगों के उपचार में प्रभावी है। यह शरीर को स्वस्थ्य और मजबूत बनाता है। यह दिल के रोगों, मधुमेह, वात-विकार, प्रमेह विकार, प्रदर, गर्भपात, आदि की बहुत ही कारगर औषधि है। गूलर के पके हुए फल खाने योग्य होते हैं। इनका सेवन हृदय रोग, ज्वर, चक्कर आना, कमजोरी आदि को दूर करता है।
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1.पेचिश Dysentery :
गूलर की कोमल पत्तियों का 10 से 15 मिलीलीटर रस सेवन करें।
2. कमजोरी, बल, वीर्य की कमी Weakness :
गूलर की छाल का पाउडर + मिश्री को बराबर मात्रा में मिलाकर रख लें।
इसे रोज़ दस ग्राम की मात्रा में दूध के साथ सेवन करें।
इससे कमजोरी दूर होती है और शरीर में बल और वीर्य की बढ़ोतरी होती है।
3. वीर्य का पतलापन :
गूलर की छाल का पाउडर 1 भाग + बरगद की कोपलें 1 भाग + मिश्री/शक्कर 2 भाग, मिलाकर नियमित 10 ग्राम की मात्रा में दूध के साथ दिन में दो बार सेवन करने से वीर्य गाढ़ा होता है।
ऐसा 2 महीने तक नियमित किया जाना चाहिए।
4. शुक्राणुओं की कमी Low sperm count :
गूलर के दूध की 20 बूंदे + छुहारे के साथ खाने से शुक्राणु की संख्या बढ़ती है।
5. सफ़ेद पानी/ श्वेत प्रदर Leucorrhoea :
गूलर के सूखे फल + मिश्री, को शहद के स्थ चाटने से लाभ होता है।
6. प्रदर, प्रमेह Urinary disorders :
गूलर के ताज़े फल का रस + शहद/शक्कर, के साथ सुबह और शाम लेने से प्रदर में लाभ होता है।
7. कफ, कफ की अधिकता Excessive cough :
गूलर के दूध latex को मिश्री + शहद के साथ, दिन में तीन बार खाएं।
8. गर्भ से असामान्य स्राव Abnormal discharge from uterus :
गूलर की छाल का काढा बनाकर मिश्री मिलाकर, रोज़ कुछ सप्ताह तक नियमित सेवन करें।
9. बच्चों का सूखा रोग :
गूलर का दूध, बताशे में रख कर खाने से लाभ होता है।
10. ह्रदयविकार :
गूलर के पत्ते क रस नियमित पियें।
11. लीवर के रोग, वात-विकार :
गूलर के पत्ते का रस नियमित पियें।
12. प्रदर रोग Leucorrhoea, कमजोरी, वीर्यपात Spermatorrhea :
गूलर के पत्ते का रस एक कप की मात्रा मे नियमित पियें।
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★ बाहरी प्रयोग [External Uses] :
• जलने पर :
13. गूलर की पत्ती का लेप : प्रभावित हिस्से पर लगायें।
14. रक्त स्राव, चोट Bleeding : खून निकलने पर पत्ते का रस प्रभावित हिस्से पर लगाने से खून का निकलना बंद होता है।