बिछिया | Bichhiya

बड़े-बड़े अन्वेषक (Inventor) तथा विज्ञानवेत्ता (Philosopher) भी हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों-ब्रह्मवेत्ताओं एवं पूर्वजों द्वारा प्रमाणित अनेक तथ्यों एवं रहस्यों को नहीं सुलझा पाये हैं।

पाश्चात्य जगत के लोग भारतीय संस्कृति के अनेक सिद्धान्तों को व्यर्थ की बकवास बोलकर कुप्रचार करते थे लेकिन अब वे ही शीश झुकाकर उन्हें स्वीकार कर किसी-न-किसी रूप में मानते भी चले जा रहे हैं।

भारतीय समाज में स्त्री-पुरुषों में Ornaments (आभूषण) पहनने की परम्परा प्राचीनकाल से चली आ रही है और ये आभूषण धारण करने का अपना एक महत्त्व है जो शरीर और मन से जुड़ा हुआ है स्वर्ण के आभूषणों (Ornaments) की प्रकृति गर्म है तथा चाँदी के गहनों की प्रकृति शीतल है यही कारण है।

ग्रीष्म ऋतु में जब किसी के मुँह में छाले पड़ जाते हैं तो प्रायः ठंडक के लिए मुँह में चाँदी रखने की सलाह दी जाती है इसके विपरीत सोने का टुकड़ा मुँह में रखा जाये तो गर्मी महसूस होगी।

भारत में बिछिया अत्यधिक प्रचलित है, हिंदू महिलाओं द्वारा इसे विशेष रूप में पहना जाता है और शादीशुदा हिंदू महिला के लिए बिछिया जबरदस्त सामाजिक महत्व रखती है, ये आम तौर पर चांदी से बने होते हैं।

बिछिया सोने से नहीं बन सकते हैं, क्योंकि सोने को कमर के नीचे नहीं पहना जा सकता है। हिंदुओं का मानना ​​है कि सोना धन की देवी लक्ष्मी को पसंद है, इसलिए कमर के नीचे सोना पहनने को लोग अनुचित मानते हैं। आइए जाने बिछिया पहनने के स्वास्थ्य लाभों के बारे में…

बिछिया पहनने के 5 महत्तवपूर्ण वैज्ञानिक कारण :

ऐसा कहा जाता है कि पैर की दूसरी अंगुली का सम्बन्ध गर्भाशय से होता है और यह हृदय से होकर गुजरती है।

चांदी को एक अच्छे कंडक्टर के रूप में जाना जाता है, यह धरती से ध्रुवीय ऊर्जा को अवशोषित करता है और शरीर में भेजता है, इस प्रक्रिया से पूरा शरीर ताज़ा रहता है।

यह भी एक विश्वास है कि पैर में बिछिया पहनने से यह कुछ तंत्रिकाओं पर दबाव डालते हैं।

यह माना जाता है कि दोनों पैरों में बिछिया पहनकर महिलाएं अपने धर्म चक्र को नियमित कर सकती है। यह विवाहित महिलाओं को गर्भधारण के लिए अच्छा अवसर प्रदान करता है।

भारतीय महाकाव्य रामायण में बिछिया की महत्वपूर्ण भूमिका है। जब रावण ने सीता का अपहरण कर लिया था तो उन्होंने अपनी बिछिया को भगवान राम की पहचान के लिये फेंक दिया था। इससे पता चलता है कि बिछिया का उपयोग प्राचीन काल से होता आ रहा है।

आभूषण पहनने का वैज्ञानिक कारण महत्त्वपूर्ण तथ्यों के साथ :

चूँकि स्त्रियों पर सन्तानोतपत्ति का भार होता है उसकी पूर्ति के लिए उन्हें आभूषणों द्वारा ऊर्जा व शक्ति मिलती रहती है सिर में सोना और पैरों में चाँदी के आभूषण (ornament) धारण किये जायें तो सोने के आभूषणों से उत्पन्न हुई बिजली पैरों में तथा चाँदी आभूषणों से उत्पन्न होने वाली ठंडक सिर में चली जायेगी क्योंकि सर्दी गर्मी को खींच लेती है इस तरह से सिर को ठंडा व पैरों को गर्म रखने के मूल्यवान चिकित्सकीय नियम का पूर्ण पालन हो जायेगा।

यदि इसके विपरीत यदि सिर चाँदी के तथा पैरों में सोने के गहने पहने जायें तो इस प्रकार के गहने धारण करने वाली स्त्रियाँ पागलपन (Madness) या किसी अन्य रोग की शिकार बन सकती हैं अर्थात सिर में चाँदी के व पैरों में सोने के आभूषण कभी नहीं पहनने चाहिए। प्राचीन काल की स्त्रियाँ सिर पर स्वर्ण के एवं पैरों में चाँदी के वजनी आभूषण धारण कर दीर्घजीवी,स्वस्थ व सुन्दर बनी रहती थीं।

यदि सिर और पाँव दोनों में स्वर्णाभूषण (Jewelery) पहने जायें तो मस्तिष्क एवं पैरों में से एक समान दो गर्म विद्युत धारा प्रवाहित होने लगेगी जिसके परस्पर टकराव से जिस तरह दो रेलगाड़ियों के आपस में टकराने से हानि होती है वैसा ही असर हमारे स्वास्थ्य (Health) पर भी होगा।

जिन धनवान परिवारों की महिलाएँ केवल स्वर्णाभूषण ही अधिक धारण करती हैं तथा चाँदी पहनना ठीक नहीं समझतीं वे इसी वजह से स्थायी रोगिणी रहा करती हैं।

विद्युत का विधान अति जटिल है तनिक सी गड़बड़ में परिणाम कुछ-का-कुछ हो जाता है, यदि सोने के साथ चाँदी की भी मिलावट कर दी जाये तो कुछ और ही प्रकार की विद्युत बन जाती है, जैसे गर्मी से सर्दी के जोरदार मिलाप से सरसाम हो जाता है तथा समुद्रों में तुफान उत्पन्न हो जाते हैं उसी प्रकार जो स्त्रियाँ सोने के पतरे का खोल बनवाकर भीतर चाँदी,ताँबा या जस्ते की धातुएँ भरवाकर कड़े, हंसली आदि आभूषण (ornament) धारण करती हैं वे हकीकत में तो बहुत त्रुटि करती हैं। वे सरेआम रोगों एवं विकृतियों को आमंत्रित करने का कार्य करती हैं।

आभूषणों में किसी विपरीत धातु के टाँके से भी गड़बड़ी हो जाती है अतः सदैव टाँकारहित आभूषण (Stitch-free jewelery) पहनना चाहिए अथवा यदि टाँका हो तो उसी धातु का होना चाहिए जिससे गहना बना हो।

पैरों, नाक और कानों में आभूषण पहनने के चमत्कारी फ़ायदे :

नाक और कानों में बालियाँ अथवा झुमके : विद्युत सदैव सिरों तथा किनारों की ओर से प्रवेश किया करती है। अतः मस्तिष्क के दोनों भागों को विद्युत के प्रभावों से प्रभावशाली बनाना हो तो नाक और कान में छिद्र करके सोना पहनना चाहिए कानों में सोने की बालियाँ अथवा झुमके आदि पहनने से स्त्रियों में मासिक धर्म संबंधी अनियमितता कम होती है, हिस्टीरिया रोग में लाभ होता है तथा आँत उतरने अर्थात हार्निया को रोग नहीं होता है।

नाक में नथुनी : नाक में नथुनी धारण करने से नासिका संबंधी रोग नहीं होते तथा सर्दी-खाँसी में राहत मिलती है।

पैरों की अँगुलियों में चाँदी की बिछिया : पैरों की अँगुलियों में चाँदी की बिछिया पहनने से स्त्रियों में प्रसवपीड़ा कम होती है, साइटिका रोग (Sciatica disease) एवं दिमागी विकार दूर होकर स्मरणशक्ति में वृद्धि होती है।

पैरों में पायल : पायल पहनने से पीठ, एड़ी एवं घुटनों के दर्द में राहत मिलती है हिस्टीरिया (Hysteria) के दौरे नहीं पड़ते तथा श्वास रोग की संभावना दूर हो जाती है इसके साथ ही रक्तशुद्धि होती है तथा मूत्ररोग की शिकायत नहीं रहती।

सबसे ज़्यादा आभूषण पहनने वाली रेबारी जाती के लोग इसका सबूत है :

आपको पता होगा की राजस्थान की रेबारी जाती के लोग जो देश के सभी राज्यो में अपने पशुओ भेड़-ऊँट को उनके पालन पोषण के लिए घूमते रहते है क्योंकि राजस्थान का अधिकतर भाग रेतीला है जहाँ हरियाली का आभाव है उस रेबारी जाती के पुरुष और औरतो के आभूषण इतने होते है की शायद हम कल्पना भी नही कर सकते,

चाँदी के आभूषण 4-5 किलो और सोना तो 20-30 तोला पहनते है, यही कारण है वो लोगो बहुत की कम बीमार होते है तथा भारत का भ्रमण किसी वाहन से ही नही बल्कि पैदल यात्रा से ही करते है। तो आपको अच्छे से समझ आ गया होगा की भारतीय संस्कृति में आभूषण को पहनना सिर्फ शोक के लिए नही है बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाली चिकित्सा है।