ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए कुंभकर्ण, रावण और विभिषण ने कठोर तप किया था। आखिरकार भूखे प्यासी रहकर सालों तप करने के बाद ब्रह्मा जी उन तीनो से प्रसन्न हुए। रावण ने ब्रह्मा जी से शक्तियां मांगी और विभीषण ने ब्रह्मा जी से भगवान की भक्ति मांगी| अंत में कुंभकरण ने अपने लिए इंद्रासन मांगा| इंद्रासन का अर्थ होता है इंद्र का आसन। लेकिन उसके मुख से इंद्रासन के स्थान पर निद्रासन निकलता है जिसका शाब्दिक अर्थ है लंबे समय तक सोते रहना। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि माता सरस्वती ने उसकी जीभ पर बैठकर उसे निद्रासन कहने पर मजबूर कर दिया था।
तत्पश्चात रावण एवं उसके भाई विभीषण ने ब्रम्हाजी से प्रार्थना कि अगर यह हमेशा सोता रहेगा तो इसका जीवन व्यर्थ हो जाएगा। उन दोनों की प्रार्थना से खुश होकर ब्रह्मा जी ने कहा की यह 6 महीने तक सोता रहेगा और फिर 1 दिन के लिए जागेगा। यह वरदान वास्तव में लंका के राज्य के लिए एक अभिशाप बन गया, क्योंकि नींद से जागने के बाद भी इंसानों को मारकर खा जाता था।
राम के साथ युद्ध के दौरान रावण को अपने भाइयों की मदद की ज़रूरत थी, तब उसने कुंभकरण को जगाने का फैसला किया। जागने पर कुंभकर्ण ने स्थिति का मूल्यांकन किया और रावण और राम के बीच चल रहे युद्ध में श्री राम की सारी सेना को मारने का प्रण लिया। कुंभकरण को यह ज्ञात था कि श्रीराम को हराना असंभव है लेकिन फिर भी उसने अपने भाई के प्रति प्रेम का प्रमाण दिया और राम के हाथों मारा गया।