भगंदर (Fistula) एक जटिल समस्या है और इसका इलाज और इसे जड़ से समाप्त करना चिकित्सकों के लिए कड़ी चुनौती साबित होती हैइस रोग में गुदा मार्ग के बाहर एक या एक से अधिक पिंडिकाएं उत्पन्न हो जाती है इससे स्राव आता रहता हैगुदा के भीतरी भाग में वेदनायुक्त पिंडिकाओ से बनने नासूर को भगंदर कहते है नाड़ीव्रण का ही एक प्रकार है  क्योंकि गुदा के चारों ओर का भाग अधिक पोला होता हैअतः पिंडिका के पककर फूटने पर मवाद पोलो स्थान की धातुओं की तरफ चला जाता हैजिसका फिर ठीक प्रकार से निर्हरण नहीं हो पाता है इसमें रोगी को अत्यंत पीड़ा होती है और वह उठने बैठने एवं चलने फिरने में भी बहुत कष्ट महसूस करता है ठीक प्रकार से उपचार न होने पर यह नासूर बढ़कर दूसरी तरफ भी अपना मुख बना लेता है  तब इसकी स्थिति दो मुखी नली के समान हो जाती हैऔर कभी कभी तो इसका दूसरा मुख नितंब या जांघ तक पहुंचकर खुलता है  ऐसी स्थिति में भगंदर के नासूर से रक्त, लसिका और दुर्गन्धयुक्त मल रिसता है

करें यह घरेलू उपचार : 

  1. 25 ग्राम अनार के ताजे, कोमल पत्ते 300 ग्राम पानी में देर तक उबालें और जब आधा जल शेष रह जाए तो उस जल को छानकर भगंदर को धोने से बहुत लाभ होता है
  2. नीम के पत्तों को जल में उबालकर, छानकर भगंदर को दिन में दो बार अवष्य साफ करेंतथा नीम की पत्तियों को पीसकर भगंदर पर लेप करने से बहुत लाभ होता है
  3. काली मिर्च और खदिर (लाजवंती) को जल के छींटे मारकर पीसकर भगंदर पर लेप करें
  4. लहसुन को पीसकर, घी में भूनकर भंगदर पर बांधने से जीवाणु नष्ट होते हैं
  5. आक के दूध में रुई भिगोकर सुखाकर रखें इस रुई को सरसों के तेल के साथ भिगोकर काजल बनाएं काजल मिट्टी के पात्र पर बनाएं तथा इस काजल को भगंदर पर लगाने से बहुत लाभ होता है या आक का दूध और हल्दी मिलाकर उसको पीसकर शुष्क होने पर बत्ती बना लें इस बत्ती को भगंदर के व्रण पर लगाने से बहुत लाभ होता है
  6. चमेली के पत्ते, गिलोय, सोंठ और सेंधा नमक को कूट-पीसकर तक्र (मट्ठा) मिलाकर भंगदर पर लेप करें
  7. त्रिफला क्वाथ से नियमित भगंदर के व्रण को धोकर बिल्ली अथवा कुत्ते की हड्डी के महीन चूर्ण का लेप कर देने से भगंदर ठीक हो जाता है 
  8. रोगी को किशोर गूगल, कांचनार गूगल एवं आरोग्यवर्द्धिनी वटी की दो दो गोली दिन में तीन बार गर्म पानी के साथ करने पर उत्तम लाभ होता है नियमित दो माह तक इसका प्रयोग करने से भगंदर ठीक हो जाता है 
  9. भगंदर के रोगी को भोजन के बाद विंडगारिष्ट, अभयारिस्ट एवं खादिरारिष्ट 20-20 मिली. की मात्रा में सामान जल मिलाकर सेवन करना चाहिए

कृपया इन बातों का ध्यान रखें : 

  • घी, तेल से बने पकवानों का सेवन न करें उष्ण मिर्च-मसाले व अम्लीय रसों से निर्मित खाद्य पदार्थो का सेवन न करें  ऊंट, घोडे, व स्कूटर, साईकिल पर लम्बी यात्रा न करें
  • अधिक समय कुर्सी पर बैठकर काम न करें,दूषित जल से स्नान न करें
  • भंगदर रोग के चलते समलेंगिक सहवास से अलग रहे
  • बाजार  के चटपटे,स्वादिष्ट छोले-भठूरे,समोसे,कचौड़ी,चाट,पकौड़ी आदि का सेवन न करें