• लसोड़ा पेट और सीने को नर्म करता है और गले की खरखराहट व सूजन में लाभदायक है।
  •  यह पित्त के दोषों को दस्तों के रास्ते बाहर निकाल देता है और बलगम व खून के दोषों को भी दूर करता है। 
  • यह पित्त और खून की तेजी को मिटाता है और प्यास को रोकता है। लसोहड़ा पेशाब की जलन, बुखार, दमा और सूखी खांसी तथा छाती के दर्द को दूर करता है।
  •  इसकी कोपलों को खाने से पेशाब की जलन और सूजाक रोग मिट जाता है।
  •  यह कडुवा, शीतल, कषैला, पाचक और मधुर होता है। इसके उपयोग से पेट के कीड़े, दर्द, कफ, चेचक, फोड़ा, विसर्प (छोटी-छोटी फुंसियों का दल) और सभी प्रकार के विष नष्ट हो जाते हैं।
  •  इसके फल शीतल, मधुर, कड़वे और हल्के होते हैं।
  •  इसके पके फल मधुर, शीतल और पुष्टिकारक हैं, यह रूखे, भारी और वात को खत्म करने वाले होते हैं।

लसोड़े के गुण:

  • अतिसार :लसोड़े की छाल को पानी में घिसकर पिलाने से अतिसार ठीक होता है।
  • हैजा (कालरा) : लसोडे़ की छाल को चने की छाल में पीसकर हैजा के रोगी को पिलाने से हैजा रोग में लाभ होता है।
  • दांतों का दर्द :लसोड़े की छाल का काढ़ा बनाकर उस काढ़े से कुल्ला करने से दांतों का दर्द दूर होता है।
  • शक्तिवर्द्धक :लसोड़े के फलों को सुखाकर उनका चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को चीनी की चाशनी में मिलाकर लड्डू बना लें। इसको खाने से शरीर मोटा होता है और कमर मजबूत जाती है।
  • शोथ (सूजन) :लसौड़े की छाल को पीसकर उसका लेप आंखों पर लगाने से आंखों के शीतला के दर्द में आराम मिलता है।
  • पुनरावर्तक ज्वर :लसोड़ा की छाल का काढ़ा बनाकर 20 से लेकर 40 मिलीलीटर को सुबह और शाम सेवन करने से लाभ होता है।
  • प्रदर रोग :लसोड़ा के कोमल पत्तों को पीसकर रस निकालकर पीने से प्रदर रोग और प्रमेह दोनों मिट जाते हैं।
  • दाद :लसोड़ा के बीजों की मज्जा को पीसकर दाद पर लगाने से दाद मिट जाता है।
  • फोड़े-फुंसियां :लसोड़े के पत्तों की पोटली बनाकर फुंसियों पर बांधने से फुंसिया जल्दी ही ठीक हो जाती हैं।
  • गले के रोग : लिसोड़े की छाल के काढ़े से कुल्ला करने से गले के सारे रोग ठीक हो जाते हैं।

कृपया इन बातों का ख्याल रखें:

  • इसका स्वभाव शीतल होता है। लसोड़ा  का अधिक मात्रा में उपयोग मेदा (आमाशय) और जिगर के लिए हानिकारक हो सकता है। 
  • इसके दोषों को दूर करने के लिए दाना उन्नाव और गुलाब के फूल मिलाकर लसोड़े का उपयोग करना चाहिए।