भविष्य, स्कंद एवं पद्मपुराण में दिवाली मनाने के विभिन्न कारण बताए जाते हैं। कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान धनवंतरी का प्रार्दुभाव कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी धनतेरस के दिन हुआ था। इसके ठीक दो दिन बाद कार्तिक अमावस्या को भगवती महालक्ष्मी का प्रार्दुभाव समुद्र से हुआ। उनके स्वागत के लिए मंगलोत्सव मनाया गया। दीपमालिकाओं को लगाया गया।
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एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान कृष्ण ने नरक चतुर्दशी के दिन नरकासुर का वध किया तथा सोलह हजार राजकन्याओं को उसकी कैद से स्वतंत्र करवा कर अमावस्या के दिन द्वारका में प्रवेश किया, जहां उनके स्वागत के लिए दीपमालिकाओं को सजाया गया।

राम ने जब रावण का वध कर अयोध्या में प्रवेश किया वह भी कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष अमावस्या का दिन था उनके स्वागत के लिए भी दीप जलाकर मंगलोत्सव मनाया गया। 

एक अन्य कथा के अनुसार भगवान वामन ने धनतेरस से लेकर दिवाली तक तीन दिन में तीन कदमों से पूरे ब्रह्मांड को लेकर राजा बलि को पाताल जाने पर मजबूर किया था। राजा बलि ने तब भगवान से यह वर मांगा था कि इन तीन दिनों में जो भी यमराज के लिए दीप दान करे, अमावस्या के दिन लक्ष्मी की आराधना करे उसे यम का भय न हो तथा भगवती लक्ष्मी सदा उस पर प्रसन्न रहें।

क्या हैं मंत्र

श्रीमद्देवीभागवत के अनुसार माता लक्ष्मी का प्रार्दुभाव कार्तिक कृष्ण अमावस्या को समुद्र मंथन के दौरान हुआ था। सभी देवताओं ने मिलकर माता का विभिन्न उपचारों से पूजन किया तथा स्तुति कर आशीर्वाद ग्रहण किया।
माता ने तब उन पर प्रसन्न होकर उन्हें अपना मूल मंत्र दिया जिसको जपकर कुबेर भी धनपति बना वह मंत्र सब प्रकार के ऐश्वर्य को देने वाला हैं।

ऊँ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं कमलवासिन्यै स्वाहा।।

इस मंत्र का दिवाली की रात भर जागकर जो जप करता है अथवा इस मंत्र से आम की लकडी में शकर, घी , कमलगट्टे, एवं एक सौ आठ बिल्व पत्रों से हवन करता है वह लक्ष्मी की कृपा का पात्र होता हैं। सुख एवं ऐश्वर्य को प्राप्त करता है। उसे स्थायी लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।