➡ मौलसिरी (Bullet Wood) का परिचय :

आपने दिल को आह्लादित करनेवाले गृहवाटीकाओं में लगे सुन्दर सुगन्धित छायादार वृक्ष को अवश्य ही देखा होगा ..इसके वृक्ष के पुष्प इतने सुगन्धित होते हैं क़ि इसक़ी खुशबू फूलों के सूख जाने के बाद भी बनी रहती है ..नाम जानना चाहेंगे आप,इसे मौलसिरी या बकुल के नाम से जाना जाता है I जिसे संस्कृत में चिरपुष्प और अंग्रेजी में बुलेटवूडट्री के नाम से भी जाना जाता है I इसकी पत्तियाँ सघन और जामुन क़ी पत्तियों के सदृश होती हैं I फूल एकाकी या मंजरियों में लगते हैं… आइये आज हम आपको इसके औषधीय गुणों के बारे में…

➡ विभिन्न भाषाओं में नाम :

संस्कृत    चिरपुष्प मधुर गंध
हिन्दी         मौलसिरी
अंगेजी        बुलेट वुड ट्री
मराठी    बकुल
बंगाली    बकुलगाद्य
तेलगू     पगादामानु, पामड़ा

स्वरूप : मौलसिरी का तना छोटा, सीधा और अधिक शाखाओं से युक्त होता है। मौलसिरी के घने पते 5 से 10 सेमी लम्बे, आगे का भाग नुकीला तथा वृन्त की ओर गोल व कम चौड़े जामुन के पत्तों के जैसे होते हैं। इसके फूल सफेद रंग (वर्ण) 24 पंखुड़ियों से युक्त होते हैं जोकि एकाकी या मंजरियों में निकलते हैं तथा फल एक इंच तक लम्बा अण्डाकार, कच्चेपन की अवस्था में हरा और पकने पर नांरगी या पीले रंग का हो जाता है। प्रत्येक फल में अण्डाकार, चपटा, चमकीले भूरे रंग का एक बीज होता है। गर्मी से सर्दी तक इसमें फूल लगते हैं और बाद में फल आते हैं।

स्वभाव : मौलसिरी की छाल में टैनिन, रंजक द्रव्य, मोमीय पदार्थ, स्टार्च और क्षार पाई जाती हैं। फूलों में एक उड़नशील तेल, बीजों में एक स्थिर तेल तथा फल मज्जा में शर्करा (चीनी) व सैपोनिन पाया जाता है।

गुण : मौलसिरी पित, कफशामक, स्तम्भक, ग्राही (पाचनशक्तिवर्द्धक), कृमिघ्न (कीड़ों को नष्ट करने वाला), गर्भाशय की शिथिलता, शोथ (सूजन) और योनिस्राव (योनि से खून आना) आदि को दूर करता है। यह बस्ति (नाभि के निचले हिस्से की सूजन और मूत्रमार्ग के स्राव को कम करता है। इसके फूल हृदय के लिए लाभकारी और मानसिक विकार नाशक होते हैं। फल तथा छाल पौष्टिक, खून स्तम्भक, बुखार और विषघ्न (विष को नष्ट करने वाला) तथा कुष्ठघ्न (कोढ़ को नष्ट करने वाला) है तथा दांतों के लिए विशेष लाभकारी है।

विभिन्न रोगों में सहायक :

1. दांतों के रोग:

  • मौलसिरी के पेड़ की 50 ग्राम छाल को 500 मिलीलीटर पानी में उबालें, जब यह 100 मिलीलीटर शेष बचे तो इस काढ़े से कुल्ला करें। इससे हिलते हुए दांत स्थिर हो जाते हैं।
  • मौलसिरी 1 से 2 फलों को रोजाना चबाने से दांत मजबूत हो जाते हैं।
  • मौलसिरी की छाल के चूर्ण का मंजन करने से दांत वज्र की तरह मजबूत हो जाते हैं।
  • मौलसिरी की छाल के 100 मिलीलीटर काढ़े (क्वाथ) में 2 ग्राम पीपल, 10 ग्राम शहद और 5 ग्राम घी मिलाकर कुछ देर तक मुंह में रखकर बार-बार चबाने से दांतों का दर्द दूर होता है।
  • मौलसिरी की दातून करने से दांतों का दर्द दूर होता है।
  • मौलसिरी की दातून करने से या दांतों के नीचे रखकर चबाने से हिलते हुए दांत मजबूत हो जाते हैं।
  • मौलसिरी के बीजों को गर्म पानी के साथ पीसकर लुगदी बना लें। इसके लुगदी (पेस्ट) को दांतों एवं मसूढ़ों पर मलने से दांतों का हिलना बंद हो जाता है।
  • मौलसिरी की शाखाओं के आगे के कोमल भाग का काढ़ा दूध या पानी के साथ मिलाकर रोजाना पीने से बुढ़ापे में भी दांत मजबूत हो जाते हैं।
  • मौलसिरी, नागरमोथा, वज्रदन्ती, जटामांसी, माजूफल और अनार की छाल 40-40 ग्राम। अकरकरा, लोहे का चूर्ण तथा सेंधानमक 20-20 ग्राम। भुनी फिटकरी, रूमीमस्तंगी, छोटी हरड़ और खैरी का गोन्द 10-10 ग्राम और कससी, टाटरी तथा भुनी तूतिया 6-6 ग्राम। इन सबको बारीक पीसकर मंजन बनाकर रख लें। इस मंजन को रोजाना दांतों पर मलने से दांतों का हिलना, दर्द, मैल जमना, लार गिरना तथा मुंह से दुर्गन्ध आना आदि रोग दूर हो जाते हैं।

2. सिर दर्द: मौलसिरी के सूखे फूलों का बारीक चूर्ण रोगी को (नस्य) की तरह सुंघाने से सिर का दर्द उसी समय शांत हो जाता है।

3. अतिसार (दस्त):

  • बकुल (मौलसिरी) के 8-10 बीजों को ठण्डे पानी में पीसकर रोगी को देने से अतिसार (दस्त) दूर होता है। पुराने अतिसार (दस्त) में इसके पके हुए फल के गूदे का 10-20 ग्राम रोजाना सेवन करना चाहिए।
  • मौलसिरी के 5 सूखे फल को खाने से खूनी अतिसार (दस्त) और पेचिश समाप्त हो जाती है।
  • मौलसिरी बीजों की मींगी के तेल की 20-40 बूंद की मात्रा, 2-3 दिन तक प्रयोग करने से आंव के दस्त बंद हो जाते हैं।

4. मूत्राशय के रोग:

  • 5 ग्राम मौलसिरी की छाल का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम कुछ दिनों तक पीने से मूत्र (पेशाब) में खून का आना बंद हो जाता है।
  • मौलसिरी की छाल के चूर्ण को 1-2 ग्राम की मात्रा में 1 चम्मच शहद के साथ दिन में 2-3 बार सेवन करने से योनिस्राव नष्ट हो जाता है। इस चूर्ण के सेवन से शुक्रप्रमेह (वीर्य प्रमेह), शुक्रतारल्यता (वीर्य की कमीं) और कटिशूल (कमरदर्द) आदि विकार दूर होते हैं।

5. गर्भाशय की शुद्धि के लिए:

  • जिन स्त्रियों के गर्भ न ठहरता हो उन स्त्रियों को मौलसिरी की छाल का 5-10 ग्राम चूर्ण या 10-20 मिलीलीटर काढ़े का सेवन कराएं। इससे कुछ ही दिनों में स्त्री का गर्भाशय शुद्ध हो जाता है और वे गर्म धारण के योग्य हो जाती हैं।
  • मौलसिरी की छाल के 5-10 ग्राम चूर्ण में बराबर मात्रा में शक्कर (चीनी) मिलाकर स्त्री को खिलाने से गर्भाशय से पानी का बहना बंद हो जाता है।

6. व्रण (जख्म): मौलसिरी की छाल के काढ़े से दूषित जख्म और गहरे घावों को धोने से लाभ होता है।

7. मुंह के रोग: बकुल (मौलसिरी), आंवला और कत्था इन तीनों की छाल समान मात्रा में लेकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े से दिन में 10-20 बार कुल्ला करने से मुंह के छाले, मसूढ़ों की सूजन और हर प्रकार के मुंह के रोगों में तुंरत आराम हो जाता है और दांत बहुत मजबूत हो जाते हैं।

8. खांसी: मौलसिरी के फूलों को रात भर आधा किलो पानी में भिगोकर रखें, सुबह के समय 10-20 ग्राम की मात्रा में 3-6 दिन तक उस पानी को बच्चे को पिलायें। इससे खांसी मिट जाती है।

9. कब्ज: बच्चों का कब्ज दूर करने के लिए मौलसिरी के बीजों की मींगी की बत्ती, पुराने घी के साथ बनाकर, बत्ती को गुदा में रखने से 15 मिनट में मल की कठोर गांठे दस्त के साथ निकल जाती हैं।

10. आंखों के रोग: लगभग 7 से 14 मिलीलीटर मौलसिरी के पत्तों का रस लें। इसे शहद के साथ रोजाना सुबह-शाम रोगी को देने से आंखों के रोगों में आराम आता है।

11. बुखार: 20 से 40 मिलीलीटर मौलसिरी का काढ़ा सुबह-शाम पीने से जीर्ण-बुखार के कारण आने वाली कमजोरी दूर हो जाती है।

12. पायरिया:

  • मौलसिरी के तने से दातुन करने से तथा इसके फल को चबाने से पायरिया रोग नष्ट होता है।
  • मौलसिरी की छाल का काढ़ा बनाकर कुल्ला करने से दांतों का हिलना एवं पायरिया रोग नष्ट होता है।

13. मसूढ़ों का रोग: मौलसिरी की छाल को मोटा-मोटा कूटकर 200 मिलीलीटर पानी में उबालें। आधा पानी बचने पर इससे दोनों समय कुल्ला करने से मसूढ़ों के रोग में आराम मिलता है।

14. वमन (उल्टी): सूखी मौलसिरी की छाल को आग में जलाकर 1 गिलास पानी में डालकर बुझा लें। फिर इस पानी को छानकर पीने से दर्द वाली उल्टी बंद हो जाती है।

15. थूक अधिक आना:

  • मौलसिरी की दातुन करने से एवं चबाने से मुंह में लार का अधिक आना बंद होता है।
  • मौलसिरी की छाल का काढ़ा बनाकर गरारे एवं कुल्ला करें। इससे अधिक थूक का (लारस्राव) आना कम हो जाता है।

16. आमातिसार: मौलसिरी के पके फल रोगी को खिलायें इससे पतले दस्त व आंव का गिरना भी बंद हो जाता है।

17. स्त्रियों का प्रदर रोग: मौलसिरी की ताजी छाल को छाया में सुखाकर पीस लें, फिर उसमें इसी के वजन के बराबर खाण्ड मिला लें। इसे 10 ग्राम की मात्रा से पानी के साथ सुबह 15 दिन तक सेवन करने से प्रदर रोग में लाभ होता है।

18. फोड़े-फुंसियां: मौलसिरी की छाल को लेकर सुखा लें। फिर उसे पीसकर मोम या वैसलीन में मिला लें। इसे दिन में 3 से 4 बार लगाने से फोड़े और फुंसियां ठीक हो जाती हैं।