वचा (क) यः खादेत क्षीरभक्ताशी माक्षिकेण वचारज: ।अपस्मारं महाघोरं सूचिरोत्थं ज्येदध्रुवम् ।। चक्र.।।(ख) दिवा रात्रिं वचाग्रंथिम् मुखे संघारयेत् भिषक्।तेन सौख्यं भवेत्तस्य मुखरोगाद्विमुच्यते ।।हा.।।

➡ वच (sweet flag) – सामान्य परिचय 

  1. लैटिन नाम : एकोरस कैलेमस (Acorus calamus line)
  2. family : Araceae 
  3. अंग्रेजी : sweet flag
  4. संस्कृत : वचा
  5. गुजराती : घोड़ावच खोरासानिवच
  6. मराठी : बेख़ण्ड।
  7. हिन्दी : वच घोडावच भी कहते।

➡ वानस्पति परिचय :

  • यह एशिया के मध्य ,भाग पूर्वी यूरोप , भारत में लगभग सर्वत्र दलदली व जलीय भूमि में उत्तपन्न होती हे।
  • वच का पौधा गुल्म जातीय 3से 5 फुट तक उच्चा होता हे । इसके पते लम्बे , पतले ईंख के पते के समान होते है। इसकी जड़ की शाखाये चारो तरफ फैली होती है। ये रोम युक्त तथा सुगन्धित होती है। वैसे इसके सभी अंगो से सुगन्ध आती है। सूखने पर यह भूरा रंग का होता है। www.allayurvedic.org

➡ रासायनिक संघठन :

  • पिले रंग का उड़नशील तैल, एकोरिंन, ऐकोरेटिन् स्टार्च, गोंद, टैनिन एवं कैल्शियम आक्जलेट आदि 
  1. गुण : लघु, तीक्ष्ण, सर।
  2. रस : तिक्त, कटु।
  3. वीर्य : उष्ण।
  4. विपाक : कटु। 
  5. प्रभाव : मेध्य।

➡ इन रोगों में औषिधीय प्रयोग होता है :

  • इसका उपयोग उन्माद अपस्मार, अपतंत्रक, स्वाश कास, कंठरोग, जीर्ण अतिसार, संग्रहणी, आध्मान, शूल, मन्द ज्वर, विषम ज्वर, कर्ण मूल शोध आदि रोगों में कहते है। यह बुद्धिवर्धक है इसके लिए वच चूर्ण को शहद या दूध के साथ अधिक  दिन तक सेवन कराने से लाभ होता हे । बेहोशी को दूर करने के लिए इसके महीन चूर्ण को नाक में डालते है तो छीख आकर होश आ जाता हे । इसके अधिक मात्रा में प्रयोग से वमन होता हे ।विषम ज्वर में, जीर्ण ज्वर में,यानि जहाँ कुनैन व सिनकोना काम नही करता  वहाँ वच चूर्ण को जल में घोलकर देने से अवश्य लाभ होता है वच चूर्ण व चिरायता चूर्ण दोनों समान मात्रा में लेकर एक से दो माशे की मात्रा में दिन में 3 बार शहद  के साथ चाटने से ओर वच चूर्ण ओर हरड़ के चूर्ण दोनों को मिलाकर आग में डालकर शरीर पर धुँआ देने से रोगी ठीक होता है। www.allayurvedic.org
  • प्रयोज्य अंग : मूल।

➡ प्रयोग करने की मात्रा : 

  •  वमन करने हेतु 1 से 2 ग्राम , अन्य गुणों के लिए 250 से 500 मि.ग्राम ।
  • विशिष्ट योग : सारस्वत चूर्ण ,मेध्य रसायन ।
  • नोट : इसे पित्त प्रकति वाले को नही खाना चाहिए ।इसके खाने से किसी प्रकार का उपद्रव होने से पर सौंफ़ व नींबू का शर्बत देना चाहिए ।

➡ अन्य रोगों में महत्त्वपूर्ण प्रयोग : 

  1. इसकी जङोँ मेँ ग्लूकोसाइड, एकोरिन, कैलेमिन, टैनिन, स्टार्च, विटामिन-सी, वसा अम्ल, चीनी और कैल्शियम ऑक्सेलेट होते हैँ। इसका तेल सौँदर्य प्रसाधन, इत्र उद्योग और कीटनाशकोँ मेँ भी प्रयोग होता है। खुशबूदार उत्तेजक और हल्के टॉनिक की वजह से आधुनिक हर्बल दवाइयोँ मेँ इसका व्यापक रूप से उपयोग हो रहा है।            www.allayurvedic.org
  2. आयुर्वेद मेँ इसका उपयोग चेतना मेँ स्पष्टता लाने की क्षमता के कारण होता है।
  3. यह शराब से होने वाली बीमारियोँ, विशेष रूप से मस्तिष्क और जिगर पर होने प्रभाव के लिए उत्तम औषधि है।
  4. आयुर्वेद मेँ इसका उपयोग हैलुसिनेशन के दुष्प्रभावोँ को कम करने के लिए होता है।
  5. इसकी जङोँ का उपयोग मस्तिष्क व तंत्रिका तंत्र और पाचन विकारोँ के उपाय के रूप मेँ किया जाता है।
  6. बाह्य रूप से वच का इस्तेमाल त्वचा के रोगोँ, आमवाती दर्द और नसोँ के दर्द के इलाज के लिए होता है।
  7. होम्योपैथिक उपचार हेतु इसकी जङोँ का प्रयोग पेट फूलने, अपच, आहार और पित्ताशय के विकारोँ के लिए किया जाता है।
  8. आयुर्वेदिक चिकित्सा मेँ इसके प्रकन्दोँ को वातहर और कृमिनाशक गुण का अधिकारी माना जाता है और इसका उपयोग कई प्रकार के विकारोँ जैसे की मिर्गी और मानसिक रोगोँ को ठीक करने के लिए होता है।
  9. बच्चोँ मेँ निमोनिया का इलाज करने के लिए इसके प्रकन्द का पेस्ट सीने पर लगाया जाता है। www.allayurvedic.org
  10. प्रकन्द का छोटा सा टुकङा पत्थर पर जायफल और राङा के फल के साथ मिलाया जाता है और उसका पेस्ट माँ के दूध के साथ सर्दी, खाँसी और बुखार से पीङित बच्चोँ को दिया जाता है।
  11. भारतीय लोक चिकित्सा और एथ्नोबॉटनी के शब्दकोश मेँ वच के प्रयोग का वर्णन अस्थमा, शरीर मेँ दर्द, मिर्गी, हिस्टीरिया, सिर दर्द, मलेरिया, गर्दन मेँ दर्द, सर्पदंश, टॉनिक और कीटनाशक के रूप मेँ प्रयोग किया गया है।