★ मखाने खाने से वीर्य की कमी, मर्दाना कमजोरी, शुक्रमेह, प्रजनन क्षमता सहित 28 रोगों में चमत्कारिक फायदे है ★
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- मखाने को सभी लोग जानते हैं। यह एक सूखे मेवे की तरह प्रयोग किया जाता है। मखाने को संस्कृत में मखान्न, पद्मबीजाभ, पानीयफल कहा जाता है। आम भाषा में इन्हें मखाना या फूलमखाना कहते हैं। इन्हें एक विशेष प्रकार के कमलगट्टे (कमल के बीज) को भून कर तैयार किया जाता है। इसका पौधा कमल-कुल का है और उथले पानी में पाया जाता है। मखाने के बीज और कमलगट्टे के आयुर्वेदिक गुण-धर्म सामान होते हैं।
- मखाने बहुत ही पौष्टिक होते हैं। व्रत-उपवास तथा खीर, सब्जी बनाने में इनका प्रयोग किया जाता है। देखने में यह सफ़ेद, गोल और मुलायम होते हैं। मखाने की मांग न केवल देश में बल्कि पूरी दुनिया में है। इन्हें गोरगोन, फाक्सनट तथा प्रिकली लिली भी कहते हैं। इनकी खेती भारत, चीन, जापान, कोरिया आदि में हजारों साल से की जाती रही है। भारत में यह सहरसा, पूर्णिया, कटिहार, सुपौल, समस्तीपुर, दरभंगा और मधुबनी जिले में बहुतायत रूप से होते है।
- दरभंगा एवं मधुबनी इलाके, देश में उत्पादित मखाने का करीब 40 प्रतिशत पैदा करते हैं तथा पूरी दुनिया का 80 से 90 प्रतिशत मखाना बिहार से ही होता है। बिहार के अतिरिक्त, यह कश्मीर, बंगाल, और झारखण्ड में भी पाए जाते हैं।
- मखाना न केवल मेवा है बल्कि औषधीय रूप से भी प्रयोग किया जाता है। इसके सेवन पित्त और रक्तपित्त दूर होते हैं। यह वीर्य और फर्टिलिटी को बढ़ाते हैं। यह पित्त रोगों, पाचन एवं प्रजनन सम्बन्धी विकारों के इलाज के लिए भी उपयोगी हैं। पेचिश की रोकथाम में भी इसका उपयोग लाभदायक है। www.allayurvedic.org
★ मखाना बनाने की विधि :
- मखाने के क्षुप कमल की तरह होते हैं और उथले पानी वाले तालाबों और सरोवरों में पाए जाते है। मखाने की खेती के लिए तापमान 20 से 25 डिग्री सेल्सियस तथा सापेक्षिक आर्द्रता 50 से 90 प्रतिशत होनी चाहिए।
- मखाने की खेती के लिए तालाब चाहिए होता है जिसमें 2 से ढाई फीट तक पानी रहे। इसकी खेती में किसी भी प्रकार की खाद का इस्तेमाल नहीं किया जाता। खेती के लिए, बीजों को पानी की निचली सतह पर 1 से डेढ़ मीटर की दूरी पर डाला जाता है। एक हेक्टेयर तालाब में 80 किलो बीज बोए जाते हैं।
- बुवाई के महीने दिसंबर से जनवरी के बीच के होते है। बुवाई के बाद पौधों का पानी में ही अंकुरण और विकास होता है। इसकी पत्ती के डंठल एवं फलों तक पर छोटे-छोटे कांटे होते हैं। इसके पत्ते बड़े और गोल होते हैं और हरी प्लेटों की तरह पानी पर तैरते रहते हैं।
- अप्रैल के महीने में पौधों में फूल लगना शुरू हो जाता है। फूल बाहर नीला, और अन्दर से जामुनी या लाल, और कमल जैसा दिखता है। फूल पौधों पर कुछ दिन तक रहते हैं।
- फूल के बाद कांटेदार-स्पंजी फल लगते हैं, जिनमें बीज होते हैं। यह फल और बीज दोनों ही खाने योग्य होते हैं। फल गोल-अण्डाकार, नारंगी के तरह होते हैं और इनमें 8 से 20 तक की संख्या में कमलगट्टे से मिलते जुलते काले रंग के बीज लगते हैं। फलों का आकार मटर के दाने के बराबर तथा इनका बाहरी आवरण कठोर होता है। जून-जुलाई के महीने में फल १-२ दिन तक पानी की सतह पर तैरते हैं। फिर ये पानी की सतह के नीचे डूब जाते हैं। नीचे डूबे हुए इसके कांटे गला जाते हैं और सितंबर-अक्टूबर के महीने में ये वहां से इकट्ठा कर लिए जाते हैं। www.allayurvedic.org
★ बीजों से मखाना कैसे बनता है?
- फलों में से बीजों को निकाल लिया जाता है। धूप में इन बीजों को सुखाया जाता है। सूखे बीजों को लोहे की कढ़ाई में सेंका जाता है। सेंकने से बीजों की अन्दर की नमी भाप में बदल जाती है और जब इन सिंके हुए बीजों को कड़ी सतह पर रखकर लकड़ी के हथौड़ों से पीटते हैं तो गर्म बीजों का कड़क खोल फट जाता है और अब बीज फटकर मखाना बन जाता है। इन्हें रगड़ कर साफ़ किया जाता है और पॉलिथीन में पैक कर दिया जाता है।
★ सामान्य जानकारी :
- वानस्पतिक नाम : यूरेल फरोक्स Euryale ferox
- कुल (Family) : कमल-कुल निम्फियासेएइ
- औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग : बीज
- पौधे का प्रकार : जलीय पौधा
- वितरण : कमल की भांति यह भी जलीय पौधा है और तालाबों में उगाया जाता है। यह भारत में उत्तर, मध्य, और पश्चिमी भारत में पाया जाता है। उत्तरी बिहार में यह प्रचुरता में पैदा किया जाता है।
- पर्यावास : उष्ण एवं उपोष्ण जलवायु www.allayurvedic.org
★ स्थानीय नाम / Synonyms :
- English : Gorgan Nut, Fox Nut
- Ayurvedic : Makhaann, Paaniyaphala, Padma-bijaabha, Ankalodya
- Unani : Makhaanaa
★ आयुर्वेदिक गुण और कर्म :
- रस (taste on tongue): काषाय, मधुर, तिक्त
- गुण (Pharmacological Action): गुरु/भारी, रुक्ष
- वीर्य (Potency): शीत
- विपाक (transformed state after digestion): मधुर
- प्रधानकर्म: वात-पित्त शामक, स्तम्भन, बल्य, शुक्रल, शुक्रस्तम्भन, हृदय, कफनिःसारक, प्रमेहहर।
★ मखाने खाने के फायदे/ लाभ :
- मखाने बहुत ही पौष्टिक टॉनिक हैं। यह शरीर को शीतलता देते हैं। यह एक उत्तम भोज्य पदार्थ ही नहीं बल्कि औषधीय गुणों से भी युक्त हैं। इसकी खीर, सब्जी, केक सभी कुछ बनाया जाता है। इन्हें ऐसे ही सूखे मेवे की तरह चबा कर भी खाया जाता है। इनको खाने के कुछ लाभ नीचे दिए गए हैं।
- मखानों में ज़रूरी एमिनो एसिड पाए जाते हैं।
- इसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेड, वसा, कैल्शियम, फास्फोरस, लोहा, एवं विटामिन बी पाया जाता है।
- यह कैल्शियम से भरपूर है और हड्डियों की कमजोरी को दूर करता है।
- इसमें लगभग 12 प्रतिशत प्रोटीन होता है।
- यह प्रोटीन का उत्तम स्रोत होने के कारण मसल्स बनाने में सहायक है।
- यह एन्टी-ऑक्सीडेंट है।
- यह बल्य, एवं ग्राही dry the fluids of the body है।
- यह सुपाच्य और आसानी से पच जाता है।
- यह गर्भस्थापक है।
- यह गर्भावस्था में बहुत लाभकारी है।
- यह शरीर को शीतलता देते हैं।
- यह कफ और वातकारक है। यह पित्त को कम करता है।
- धातु क्षय में इसका सेवन लाभकारी है।
- इससे बनी खीर के सेवन से शरीर को ताकत मिलती है।
- यह वीर्यवर्धक है।
- यह रक्त विकार और पित्त विकार को दूर करने वाला है।
- यह किडनी और दिल की सेहत के लिए फायदेमंद है। www.allayurvedic.org
★ औषधीय उपयोग :
- वीर्य की कमी, मर्दाना कमजोरी, शुक्रमेह में इसे हलवे के साथ खाना चाहिए।
- आटे, घी, चीनी के हलवे मखाने डाल कर खाने से गर्भाशय की कमजोरी और प्रदर की समस्या दूर होती है।
- पेशाब के रोग में मखानों को गर्म पानी के साथ खाना चाहिए।
- प्रसव बाद इसके सेवन से शरीर के अन्दर की गर्मी, पित्त, कैल्शियम की कमी, आदि दूर होते हैं।
- यह शरीर को बल, ताकत, शक्ति देते हैं।
- इनका नियमित सेवन प्रजनन क्षमता को बढ़ाता है।
- इनके सेवन से रात को आने वाले भयानक सपने नहीं आते।
- पेचिश / दस्त में मखानों को घी में भूनकर खाना चाहिए।
- पित्तविकारों और रक्त विकारों में इसके सेवन से लाभ होता है।
- मखाने को नियमित रूप से 10-30 ग्राम तक की मात्रा में खाया जा सकता है। आयुर्वेद में मखाने को शीतल प्रकृति वालों के लिए अहितकर माना गया है। www.allayurvedic.org