अपामार्ग को कई नामों से जाना जाता है जैसे की चिरचिटा, लटजीरा, प्रिकली चाफ फ्लावर आदि। अपामार्ग का पौधा, अक्सर अपने मार्ग में आने वाले लोगों के लिए बाधा करता है, इसके बीज कपड़ों पर अच्छे से चिपक से जाते है, और इसलिए शायद इसे अपामार्ग नाम मिला है। इसके पौधे मयूर या मोर की तरह सीधे खड़े हुए दिखाई देते है तथा यह पौधा मयूर, मयूरका कहलाता है।
बारिश के मौसम यह प्राकृतिक रूप से हर जगह उगता पाया जाता है। आयुर्वेद में अपामार्ग के पूरे सूखे पौधे को औषधीय प्रयोजनों लिए हजारों वर्षों से प्रयोग किया जाता रहा है। अपामार्ग में काफी मात्रा में क्षार पाया जाता है इसलिए इसका प्रयोग अपामार्ग क्षार Apamarga Kshara और अपामार्ग क्षार तेल Apamarga Kshara Taila बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
अपामार्ग स्वाद में कड़वा, चरपरा, और तासीर में गर्म hot होता है। इसे खांसी, अस्थमा, बढ़े हुए प्लीहा, मलेरिया, माहवारी में दर्द, दांत दर्द, आदि के उपचार में प्रयोग किया जाता है। यह कफनाशक expectorant, रक्तशोधक blood purifying, रुचिकारक appetizer, विरेचक laxative और मूत्रल diuretic है।
अपामार्ग को मधुमेह diabetes, काली खांसी whooping cough के लिए भी प्रयोग किया जाता है। पूरे पौधे से बने काढ़े को विरेचक laxative के रूप में प्रयोग किया जाता है और बाह्य रूप से और फोड़े boils और मुंहासों pimples पर लगाया जाता है।
दवा Cystone में अपामार्ग का प्रयोग किया जाता है जो की शरीर में स्टोन बनाने वाले पदार्थों जैसे की oxalic एसिड, कैल्शियम हाइड्रॉक्सीप्रोलाइन आदि को बनने से रोकता है और मूत्र मार्ग में संक्रमण से भी बचाता है। अपामार्ग से बनने वाले दवा के करीब पैंतीस पेटेंट है जो की अस्थमा, गले की सूजन और श्वशन संक्रमण के लिए हैं।

★ सामान्य जानकारी General Information
अपामार्ग का पौधा कड़ा stiff, सीधा straight, 0.3-0.9 मीटर की उंचाई का होता है। भारत में यह 900 मीटर की उंचाई तक एक खरपतवार की तरह हर जगह पाया जाता है। इसकी पत्ती लम्बी, और नूकदार होती हैं। यह दो प्रकार का होता है लाल और सफ़ेद।
वानस्पतिक नाम: अकाईरंथेस अस्पेरा Achyranthes aspera
कुल (Family): एमरेनथेसिएई Amaranthaceae/goosefoot family
औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: पूरा पौधा
पौधे का प्रकार: खरपतवार, छोटा झाड़
वितरण: पूरे भारत में ९०० मीटर की उंचाई तक।
पर्यावास: सूखी ज़मीन
Vernacular names/Synonyms of Apamarga
Sanskrit: Mayura, Mayuraka, Pratyakpushpa, Kharamanjar मयूर, मयूरका, प्रत्याकपुष्पा, खरमंजर
Unani: Chirchita चिरचिटा
Siddha/Tamil: Nayuruvi
Folk: Chirchitta, Chichidaa, Latjeera
Bengali: Apamg
English: Prickly Chaff Flower प्रिकली चाफ फ्लावर
Gujrati: Aghedo अघेड़ो
Hindi: Chirchita, Latjira चिरचिटा, लटजीरा
Kannada: Uttarani
Malayalam: Katalati
Marathi: Aghada
Punjabi: Puthakanda
Tamil: Nayuruvi
Telugu: Uttarenu
Urdu: Chirchita चिरचिटा
Constituents of Apamarga – सपोनिंस Saponins
Ayurvedic Properties and Action of Apamarga
आयुर्वेदिक गुण और कर्म
रस (taste on tongue): कटु , तिक्त
गुण (Pharmacological Action): सार, तीक्ष्ण
वीर्य (Potency): उष्ण
विपाक (transformed state after digestion): कटु
कर्म: दीपन (promote appetite but do not aid in digesting undigested food), पाचन (assist in digesting undigested food food, but do not increase the appetite), कफ-हर, वात-हर, मेदोहर, छेदन (discharge from the body adherent phlegm or other humours), वमक (emesis of bile, mucus and other contents of the stomach), शिरोविरेचन

★ Home remedies Using Apamarga/Medicinal Use of Apamarga in Hindi
अपामार्ग में विरेचक laxative, मूत्रवर्धक diuretic और आल्टरेटिव alterative (पूरे शरीर के अंगों का फंक्शन नार्मल करना, जैसे की खून साफ़ करना, भूख बढ़ाना, पाचन और विरेचन कराना आदि) गुण हैं। बड़ी मात्रा में इसका सेवन वमनकारी (उल्टी लाने वाला) emetic है। लेकिन कम मात्रा में यह कफ ढीला करने वाला है।
आल्टरेटिव होने के कारण इसे रक्त शोधक के रूप में प्रयोग किया जाता है
अपामार्ग का पाउडर शहद के साथ जलोदर dropsy, ascites की स्थिति में लिया, ग्रंथियों वृद्धि और त्वचा संबंधी विकारों में प्रयोग किया जाता है। बाह्य रूप से अपामार्ग का प्रयोग कुत्ता काटने, सांप के काटने, आदि के मामलों में प्रयोग किया जाता है।

• प्रसव पीड़ा labor pain
भयंकर पीड़ा होने पर जब प्रसव में विलम्ब हो रहा है तो इसकी जड़ को पीसकर पेडू पर लेप करने से प्रसव शीघ्र हो जाता है।
• आधाशीशी migraine, दिमाग के रोग, पीनस, नाक, माथे में अधिक कफ
बीजों का चूर्ण बनाकर सूंघने से कफ ढीला हो कर निकलने में मदद मिलती है।
• कीड़ों का काटना, बिच्छू काटना, सोरिसिस
पत्तों का पेस्ट प्रभावित हिस्सों पर लगाएं।
• पथरी
ताज़ी जड़ (6 ग्राम) की मात्रा में पानी में घोंटकर दी जाती है।
• यक्ष्मा Tuberculosis
पौधे का पाउडर (5 ग्राम) + शहद, का प्रयोग किया जाता है।
• दांत दर्द Toothache
दांत पर ताजा पत्तों को रगड़, मालिश करें।
ताज़ा जड़ों से दांत साफ करें।
• हैज़ा cholera
1 चाय के चम्मच में भरकर रूट पाउडर का सेवन हैजे में लाभ करता है।
• खुजली Scabies
रूट पाउडर + एक चुटकी नमक को बाह्य रूप से प्रभावित अंग पर लगाएं।
• बुखार Fever
रूट पाउडर (5 ग्राम) + आधा काली मिर्च को खाने से आराम मिलता है।
• बवासीर Hemorrhoids
रूट पाउडर (5 ग्राम), खाली पेट लें।
पत्तों का पेस्ट, तिल तेल में मिलाकर प्रभावित हिस्से पर बाहरी रूप से लगाया जाता है।
• दमा Asthma
करंज पत्तों + वासा के पत्ते + अपामार्ग जड़ + कंटकारी, से बना काढा २ चम्मच लिया जाता है।
• फोड़ा Abscess
बाह्य रूप से जड़ का पेस्ट लगाएं।
• विसूचिका Visuchika (Gastro-enteritis with piercing pain)
रूट पाउडर (3-6 ग्राम) दिन में तीन बार लें।
• रक्त-बवासीर
बवासीर में बीजों का चूर्ण 3 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम लेने से लाभ होता है।
• घाव
घाव पर पत्तों का एस लगाने से उन्हें भरने में मदद मिलती है।
कान का बहरापन, कान में आवाज़ पाना, काने से पानी बहना, • कान में दर्द
कान के विकार होने पर, अपामार्ग क्षार का तिल में बना तेल जो की मार्किट में ‘अपामार्ग क्षार तेल’ के नाम से जाना जाता है, 2-6 बूँद की मात्रा में कान में डालना चाहिए।
• नकसीर, नाक से खून
अपामार्ग क्षार तेल की कुछ बूंदे नाक में डालें।